जल पर संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित jal hi jeevan hai in sanskrit. Jal par sanskrit shlok hindi arth sahit
Religious importance of water: जल का धार्मिक महत्व
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human body build 98% of water. it is basic requirement of human beings.
जो जल से जल का सृजन करता है और जल से जल का पालन करता है तथा जल से ही जल का हरण किया करता है उस कृष्ण का निरंतर भजन करो-
जलं जलेन सृजति जलं पाति जलेन यः।
हरेज्जलं जलेनैव तं कृष्णं भज सन्ततम्।।
उस दिव्य जल की हम अभ्यर्थना करते है, जो अन्तरिक्ष के लिए हवि प्रदान करता है तथा जहां हमारी इन्द्रियाँ तृप्त होती है -
Source of water. जल के स्रोत
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विवस्वानर्ष्टाभर्मासैरादायापां रसात्मिकाः।
वर्षत्युम्बु ततश्चान्नमन्नादर्प्याखिल जगत्।
जल का महत्व, Importance of water. jal ka mahatv
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Importance of water in our basic development of life:-
Without food human can survive for a number of days, but water is such an essential element that without, he canot. In the ancient times human required water for drinking bathing, cooking etc., But with the advancement of civilization the utility of water enormously increased, and now such a stage has come that without well organised public water supply Scheme, it is impossible To ran the present demand of water requirement.
छान्दोग्योपनिषद में जल के महत्व के विषय में कहा गया है कि मनुष्य सोलह कलाओं से युक्त है, वह पन्द्रह दिन तक बिना भोजन किये हुए केवल जलपान करके भी जीवित रह सकता है , क्योंकि, प्राण जलमय है, इसलिए जल पीते रहने से जीवन का नाश नहीं होगा-
षोडशकलाः सौम्य पुरुषः पञ्चदशाहानिमाशीः काममपः |
पिबापोमयः प्राणो न पिबतो विच्छेत्स्यत।।
विष्णु पुराण में कहा गया है कि, जो जल मेघो द्वारा बरसाया जाता है, वह प्राणियों के लिए अमृत स्वरूप है और वह जल मनुष्यों के लिए औषधियों का पोषण करता है -
यन्तु मेघैः समुत्सृष्टं वारि तत्प्राणिनां द्विज।
पुष्णात्यौषधयः सर्वा जीवनायामृतं हि तत्।।
भूमि के अनुसार जल की विशेषता भी अलग अलग होती है - सफेद मिट्टी वाली भूमि पर गिरने से जल कषाय वर्ण, पाण्डु वर्ण की भूमि पर गिरने से जल क्षार, उसर भूमि पर गिरने पर जल लवण, पर्वत पर गिरकर बहने वाला जल कटु, और काले मिट्टी पर गिरने वाला जल मधुर होता है इस प्रकार भूमिगत जल के 6 गुण होते हैं -
श्वेते कषायं भवति पाण्डरे स्यात्तिक्तम्।
कपिले क्षारसंसृष्टमूषरे लवणान्वितम्।
कटुपर्वत विस्तारे मधुरं कृष्णमृत्तिके।
एतत्षाड्गुण्यमाख्यातं महीस्थरस्य जलस्य हि।।
शीतं मदाव्ययग्लानि- मूर्च्छाच्छर्दिश्रमभ्रमान्।शीतल जल मदात्यय, ग्लानि, मूर्च्छा, थकावट, भ्रम, तृषा, उष्मा, दाह, पित्तविकार तथा रक्त विकार को नष्ट करता है -
तृष्णोषणदाहपित्तरक्त- विषाण्यम्बु नियच्छति।।
पुष्पम से सुगंधित किया हुआ जल, सुवर्ण, चांदी, तांबा, स्फटिक, मिट्टी के बर्तन में पीना चाहिए-
सौवर्णे राजते ताम्रे कांस्ये मणिमये Sपिवा।
पुष्पावातसं भौमे व सुगन्धि सलिलं पिबेत ।।
आकाश से मेघजन्य सभी जल एक ही प्रकार का गिरता है। गिरते हुए आकाश का जल देशकाल के अनुसार गुण या दोष की अपेक्षा करता है। Precipitated water changes the quality as pr the location.
जलमेकविधं सर्व पतत्यैन्द्र नभस्तलात्।
तत् पतत् पतितं चैव देशकालावपेज्ञते।।
जो जल दिन में सूर्य की किरणों से और रात्रि में चंद्रमा की किरणों से संस्कृत होता है तथा जो रोग्य और अभिष्यन्दी नहीं है, वह जल गुण की दृष्टि से अच्छा माना गया है-
दिवाकरकिरणैर्युष्टं निशायामिन्दुरश्मिभिः।
अरूज्ञमनभिष्यन्दि तत्तुल्यं गगनाम्बुना।
अच्छे पात्र में ग्रहण किया हुआ, अंतरिक्ष का जल त्रिदोष नाशक, बल कारक, रसायन और बुद्धिवर्धक होता है |इसके सिवा जैसे पात्र में उसका ग्रहण किया हुआ हो, उसके अनुसार भी जल के गुण होते हैं-
गगनाम्बु त्रिदोषन्धं गृहीतं यत् सुभाजने।
बल्यं रसायनं मेघ्यं पात्रपेक्षि ततः परम्।।
जल प्रदुषण Water Pollution. पर संस्कृत में श्लोक हिंदी अर्थ सहित
वर्षा ऋतु के अतिरिक्त ऋतुओं में वर्षा की पहली वर्षा, का जल और प्राणियों के तंतु, पूरीष, मूत्र एवं विष के संपर्क से दूषित जल भी नहीं पीना चाहिए |
व्यापन्नसलिलं यस्तु पिबतीहप्रसाधितम्।
श्वायुथपाण्डुरोगं च त्वम्दोषमविपाकताम्।।
श्वासाकारप्रतिश्यायशूलगुल्मोदराणि च।
अन्यान्वा विषमान् रोगान्प्राप्रुयादचिरेण सः।।
बिना साफ किए हुए, जो दूषित जल को पीता है | वह शोथ [सूजन], पाण्डूरोग, त्वचा, व्याधि, अजीर्ण, श्वास, जुकाम, शूल, गूल्म, उदर और अन्य विभिन्न प्रकार के विषम रोगों को प्राप्त हो जाता है।
संस्कृत में जल संरक्षण Water conservation in Sanskrit sanskrit mein jal sanrakshan.
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जब पृथ्वी तल पर थोड़ा जल संगृहीत हो जाता है, तो पृथ्वी और जल के संयोग से अनेक प्रकार की औषधियाँ उत्पन्न होती है ।
वापीकूपताडागोत्ससरः प्रस्श्रवणादिषु।।
वापी, कूप, तड़ाग, उत्स, प्रस्त्रवण ये जल संरक्षण के साधन हैं।
अन्नदानरतौ नित्यं जलदानपरायणौ।
तडागारामवाप्यादीनसंख्याकान् वितेनतुः।।
सदा अन्नदान करते रहना और प्रतिदिन जल दान में प्रवृत्त रहते थे उन्होंने असंख्य पोखरण बगीचों और बावड़ियो का निर्माण करवाया था |