5 Elements of nature अर्थात प्रकृति के पांच तत्त्व ही पंचमहाभूत हैं | अद्वैतवेदांत में इन्हीं प्रक्रृति के पांच तत्त्व से सूक्ष्म शरीर की उत्पति हुई है | अद्वैतवेदांत के अनुसार माया से उलझे हुए चैतन्य अर्थात ब्रह्म के तमोगुणप्रधान विक्षेप शक्ति से ही इन प्रकृति के पांच तत्त्व अर्थात पंचमहाभूत की उत्पति हुयी है | महाभारत (Mahabharat) में पंचमहाभूत की उत्पति के बारे में कहा गया है कि, लोक में ये पञ्च धातु (आकाश (sky&Space), वायु (Air), अग्नि (Fire), जल (Water) और भूमि (Earth) ) अर्थात प्रकृति के पांच तत्त्व ही पंचमहाभूत कहलाते हैं | इन्हें ब्रह्मा जी ने सृष्टि के आदि में रचा था | यही पंचमहाभूत सम्पूर्ण संसार में व्याप्त हैं -
त एते धातव; पञ्च ब्रह्मा यानसृजत् पुरा |
आवृता यैरिमे लोका महाभूताभिसंज्ञिता:|| महाभारत शांतिपर्व 184/1
पंचमहाभूत कौन से है ? Which is Panch Mahabhut?
इस पर महाभारत (Mahabharat) में कहा गया है कि, आकाश (sky&Space), वायु (Air), अग्नि (Fire), जल (Water) और भूमि (Earth) ये पंचमहाभूत हैं।
भूमिरापस्तथा वायुरग्निराकाशमेव च। महाभारत भीष्मपर्व 5/4
महाभारत (Mahabharat) में पंचमहाभूत के बारे में कहा गया है कि, इस संसार में जितने भी पदार्थ हैं, वे सब प्रकृति के पांच तत्त्व या पंचमहाभूतों से बने हैं। मनीषी इन सब पंचमहाभूतों को एक समान कहते हैं-
पञ्चेमानि महाराज महाभूतानि संग्रहात्।जगतीस्थानानि सर्वाणि समान्याहुर्मनीषिणः।। महाभारत भीष्मपर्व 5/3
ये पाँच भूत असीम हैं इसलिए इनके साथ महा शब्द लगाया जाता है। इन्हीं से भूतों (प्राणियों) की उत्पत्ति होती है, अतः इन्हें महभूत कहना ही उचित है-
अमितानां महाशब्दो यान्ति भूतानि सम्भवम्।
ततस्तेषां महाभूतशब्दोSयमुपपद्यते।। महाभारत शांतिपर्व 184/3
भिन्न-भिन्न लोकों में पाँच महाभूतों से बने पदार्थ दिखाई देते हैं। मनुष्य अपनी तर्क बुद्धि से इन पदार्थों के प्रमाण बतलाते हैं-
तत्र तत्र हि दृश्यन्ते धातवः पाञ्चभौतिकाः।
तेषां मनुष्यास्तर्केण प्रमाणानि प्रचक्षते। महाभारत भीष्मपर्व 5/11
सम्पूर्ण चल और अचल जगत इन पाँच महाभूतों से बना हुआ है-
इत्येतैः पञ्चभिभूतैर्युक्तं स्थावरजंगमम्। महाभारत शांतिपर्व 184/44
आकाश (sky&Space), वायु (Air), अग्नि (Fire), जल (Water) और भूमि (Earth) इन पंचमहाभूत में क्रमशः शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ये पञ्च तन्मात्राएँ या गुण होते हैं। महाभारत (Mahabhart) में तत्त्वज्ञानी ऋषियों ने भूमि को पाँच गुणों शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध वाली बताया है-
शब्द स्पर्शश्च रुपं च रसो गन्धश्च पञ्चमः।
भूमेरेते गुणाः प्रोक्ता ऋषिभिस्तत्ववेदिभिः।। महाभारत भीष्मपर्व 5/5
आकाश से लेकर भूमि तक महाभूतों का जो क्रम है उसमें पहिले की अपेक्षा पिछले भूतों में एक-एक गुण अधिक होता है। इन सब महाभूतों में पृथ्वी प्रधान है-
गुणोत्तराणि सर्वाणि तेषां भूमिः प्रधानतः।। महाभारत भीष्मपर्व 5/4
वहीँ आगे महाभारत (Mahabharat) में कहा गया है कि, आकाश में एक ही गुण शब्द रहता है। वायु में शब्द और स्पर्श दो गुण हैं । तेज में शब्द, स्पर्श और रूप ये तीन गुण हैं। जल में चार गुण- शब्द, स्पर्श, रूप और रस हैं। तथा पृथिवी में पांचो गुण रहते है-
चत्वारोSप्सु गुणाः राजन् गन्धस्तत्र न विद्यते।
शब्दः स्पर्शश्च रूपं च तेजसोSथ गुणास्त्रयः।
शब्दः स्पर्शश्च वायोस्तु आकाशे शब्द एव तु ।। महाभारत भीष्मपर्व 5/6
ये पाँच गुण पाँच महाभूतों में रहते हैं। पाँच महाभूतों से सारे प्राणी और पदार्थ बनते हैं। इन पञ्चमहाभूत में सारे प्राणी प्रतिष्ठित हैं-
एते पञ्च गुणा राजन् महाभूतेषु पञ्चसु।
वर्वन्ते सर्वलोकेषु येषु भूताः प्रतिष्ठिताः।। महाभारत भीष्मपर्व 5/7
ये पाँच गुण जब साम्यावस्था में रहते हैं तब एक-दूसरे से नहीं मिलते हैं (अन्योन्यं नाभिवर्तन्ते साम्यं भवति वै यदा।), परन्तु जब ये विषम अवस्था में आते हैं तब भूत प्राणियों के शरीर का निर्माण होता हैं -
यदा तु विषमीभावमाविशन्ति परस्परम्।
तदा देहैर्देहवन्तो व्यतिरोहन्ति नान्यथा।। महाभारत भीष्मपर्व 5/7
प्राणी भूमि से अर्थात् नाक से गन्ध सूंघता है। जल की इन्द्रिय जिह्वा से रसों का स्वाद लेता है। तेज से बने नेत्रों से रूप का तथा वायु से बनी त्वचा से स्पर्श का ज्ञान होता है-
भूमेर्गन्धगुणान् वेत्ति रसं चाद्भ्यः शरीरवान्।
ज्योतिषा चक्षुषा रूपं स्पर्शं वेत्ति च वाहिना।। महाभारत शांतिपर्व 184/26
महाभारत (Mahabharat) में जल, अग्नि और वायु ये तीन तत्त्व प्राणियों के शरीर में अपना काम सदा करते रहते हैं । ये तत्त्व ही शरीर के आधार हैं और ये प्राणों से ओत-प्रोत हुए शरीर में रहते हैं-
आपोSग्निर्मारुतश्चैव नित्यं जाग्रति देहिषु।
मूलमेते शरीरस्य व्यान प्राणानिह स्थिताः।। महाभारत शांतिपर्व 184/44
महाभारत (Mahabharat) के शांतिपर्व में भी कहा गया है कि, प्राणियों के शरीर इन पाँच महाभूतों के मिलने से बनते हैं। शरीर में चेष्टा या गति वायु (Air) के कारण है। खोखलेपन आकाश (sky&Space) का अंश , शरीर की गर्मी अग्नि (Fire) का भाग और रक्त आदि तरल पदार्थ जल (Water) के अंश हैं। हड्डी, मांस, आदि कड़े पदार्थ पृथिवी (Earth) के अंश हैं-
चेष्टा वायुः खमाकाशमूष्माग्निः सलिलं द्रवः।
पृथिवी चात्र संघातः शरीरं पाञ्चभौतिकाम्।। महाभारत शांतिपर्व 184/4
शरीर में त्वचा, माँस, हड्डियाँ, मज्जा और नस-नाड़ियाँ ये पाँच वस्तुएं पृथिवी के अंश से बनी हैं-
त्वक् च मांसं तथास्थीनि मज्जा स्नायुश्च पञ्चमम्।
इत्येतदिति संघातं शरीरे पृथिवीमयम्।। महाभारत शांतिपर्व 184/20
तेज, क्रोध, आँख, गर्मी तथा जठराग्नि, ये पाँच अग्नि के अंश हैं-
तेजो ह्यग्निस्तथा क्रोधश्चक्षुरूष्मा यथैव च।
अग्निर्जरयते यश्च पश्चाग्नेयाः शरीरिणः।। महाभारत शांतिपर्व 184/21
कान, नाक, मुख, हृदय और पेट ये आकाश के तत्त्व हैं-
श्रोतं घ्राणं तथाssस्यं च हृदयं कोष्ठमेव च।
आकाशात् प्राणिनामेते शरीरे पञ्चधातवः।। महाभारत शांतिपर्व 184/22
कफ, पित्त, पसीना, चर्बी और खून ये जल के अंश हैं-
श्लेष्मा पित्तमथ स्वेदो वसा शोणितमेव च।
इत्यापः पञ्चधा देहे भवन्ति प्राणिनां सदा।। महाभारत शांतिपर्व 184/23
आकाशादि पंचमहाभूत के सात्त्विक अंश से ज्ञानेन्द्रियों की उत्पति होती है- आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है जो इन्हीं पञ्चमहाभूतों का सूक्ष्म अंश हैं-
श्रोतं घ्राणं रसः स्पर्शी दृष्टिश्चेन्दियसंज्ञिताः।। महाभारत शांतिपर्व 184/5
आकाशादि पंचमहाभूत के रजस अंश से अलग-अलग व्यष्टिरूप में क्रमशः वाणी, हाथ, पैर, गुदा और जननेन्द्रिय - ये पांच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई-
कर्मेन्द्रियाणि वाक्पाणिपादपायूपस्थाख्याणि।। वेदान्तसार 75
आकाशादि पंचमहाभूत के उसी रजस अंश से समष्टिरुप में क्रमशः प्राण, अपान , व्यान , उदान और समान पांच प्राणवायु उत्पन्न हुए -
वायवः प्राणापानव्यानोदानसमानाः।। वेदान्तसार 77
प्राणवायु- प्राणो नाम प्राग्गमनवान्नासाग्रस्थानवर्ती।। वेदान्तसार 78
सामने गमन करने वाली नाक के अग्रभाग में रहने वाली वायु प्राण है।
अपानवायु - अपानो नामावाग्गमनवान् पाय्वादिस्थानवर्ती ।। वेदान्तसार 79
निम्न गमन वाली वायु गुदादि स्थानों में रहने वाली वायु अपान वायु है।
व्यानवायु - व्यानो नाम विष्वग्गमनवानखिलशरीरवर्ती।। वेदान्तसार 80
सम्पूर्ण शरीर में रहने वाली वायु व्यान वायु है।
उदानवायु उदानो नाम कण्ठस्थानीय ऊर्ध्वगमनवानुत्क्रमणवायुः।। वेदान्तसार 81
ऊपर की ओर चलने वाली कण्ठ स्थानीय वायु उदान वायु है।
समानवायु - समानो नाम शरीरमध्यगतशितपीतान्नादिसमीकरणकरः।। वेदान्तसार 82
शरीर में खाये-पिये हुए अन्नादि का अच्छी प्रकार परिपाक करने वाली वायु समान है।
महाभारत में पंचमहाभूत |
प्रकृति के पांच तत्व पंचमहाभूत श्लोक
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