वसन्त पंचमी, सरस्वती पूजा के लिए संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
सितपंकजकान्तिर्या या सिताप्बुरुहासना।
सिताब्दलनेत्रा या सा नः पातात्सरस्वती।।
जिसकी श्वेत-कमल सी कान्ति है, जिसका श्वेत-कमल का आसन है, जिसके नयन श्वेत-कमल की पंखुड़ी सा है, वह सरस्वती माँ हमारी रक्षा करे।
इस लेख में वसन्त पंचमी, सरस्वती पूजा के लिए संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित दिया गया है। वसन्त पंचमी कब मनायी जाती है?, वसन्त पंचमी पर सरस्वती पूजा के मन्त्र तथा वसन्त पंचमी, सरस्वती पूजा के लिए संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित आदि वर्णन किया जाएगा।
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वसन्त पंचमी
वसन्त पंचमी माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनायी जाती है। सरस्वती पूजन, श्री पूजन और मदनोत्सव आदि नामों से भी वसन्त पंचमी को जाना जाता है।
वसन्त पंचमी के दिन से ही ऋतुराज वसन्त का श्रीगणेश होता है अर्थात् वसन्त ऋतु के आगम पर ही वसन्त पंचमी का पर्व मनाया जाता है। वसन्त पंचमी का यह पर्व सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। इस दिन तिल, गुड और पीले रंग का विशेष महत्व है। लोग वसन्त पंचमी के दिन तिल से युक्त भोज्यपदार्थ खाते हैं, पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं तथा सभी लोग अपने घरों के चौखटों पर शुद्ध देवदार वृक्ष की पीली पीठाई (पीली चन्दन) लगाते हैं।
उत्तराखंड में वसन्त पंचमी के दिन जौ की हरियाली का विशेष महत्त्व है। लोग प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर जौ की हरियाली चढाते हैं तथा घरों के चौखटों पर गोबर से जौ की हरयाई (हरियाली) लगाते (चिपकते) हैं। वसन्त पंचमी के दिन महिलाएं अपनी पारंपरिक भेष-भूषा वसन्त ऋतु के गीत गाते हैं तथा नृत्य करते हैं।
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वसन्त पंचमी में सरस्वती पूजा
माघ मास की शुक्ल पंचमी तिथि अर्थात् वसन्त पंचमी के दिन ही विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती पूजा की जाती है। माना जाता है कि, वाणिपाणि मां सरस्वती का जन्म वसन्त पंचमी के दिन ही हुआ था। सरस्वती मन, बुद्धि और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। जो वसन्त पंचमी में सरस्वती पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। ज्ञानार्जन के लिए वसन्त पंचमी का दिन शुभ माना जाता है।
वसन्त पंचमी में सरस्वती पूजा के विशेष मन्त्र
वसन्त पंचमी, सरस्वती पूजा के लिए संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
१. प्रवर्तते हि विशदे हृदि स्वच्छे सरस्वती।
निर्मल हृदय में सरस्वती अवतरित होती है।
२. प्रालेयधवलां देवीं शंखकन्देन्दुरोचिषम्।
स्तुमस्तामृग्यजुःसाम्नामेकं धाम सरस्वतीम्।।
हम उस सरस्वती देवी की स्तुति करते हैं, जो हिम धवल है, शंख, कुन्द या चमेली और चन्द्रकान्ति सी शुभ है और ऋक् यजु तथा साम वेद का एक मात्र धाम है।
३. कविजनबुधवन्द्यामिन्दुवर्णां प्रसन्नां
करयुगधृतवीणां गीतवाद्यप्रवीणाम्।
सुरभिकुसुममालां केशपाशे दधानां
बहुगुणगणयुक्तां शारदां तां नमामि।।
बहु गुणों से सम्पन्न माँ शारदा को मैं प्रणाम करता हूँ, जो विद्वानों और कवियों द्वारा वन्दनीय है, चन्द्रमा के समान शुभ्र वर्ण की है और जो अपने केशपाश में सुगन्धित फूलों की माला धारण करती है।
४. उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वरा सुजुष्टा।
सरस्वती स्तोम्या भूत्।।ऋग्वेद ६.६१.१०
प्रियजनों में अतिप्रिय सात स्वरों से युक्त देवी सरस्वती माँ हमारे लिए स्तुत्य है।
५. यस्ते स्तनः शशयुर्यो मयोभूर्यः सुम्नयुः सुहवो यः सुदत्रः।
येन विश्वा पुष्यसि वार्याणि सरस्वति तमिह धातवे कः।। अथर्ववेद ७.१०.१
हे सरस्वती देवि ! आपका दिव्य ज्ञानरूपी पय शान्ति देने वाला, सुख प्रदान करने वाला, मन को पवित्र करने वाला, पुष्टि प्रदाता और प्रार्थनीय है। उस दिव्य पय को हमें भी प्रदान करें।
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६. शिवा नः शंतमा भव सुमृडीका सरस्वति।
मा ते युयोम संदृशः।। अथर्ववेद ७.७१.१
हे वाग्देवी सरस्वति ! आप हर प्रकार से सुख देने वाली हैं। आप हमें सम्पूर्ण रोगों से मुक्त करके हमारा कल्याण करें। हे देवि ! हम आपके वास्तविक स्वरूप के दर्शन करते रहें।
७. या वेदान्तार्थतत्त्वैकस्वरुपा परमार्थतः।
नामरुपात्मना व्यक्ता सा मां पातु सरस्वती।। सरस्वतीरहस्योपनिषद्। ७
जिन भगवती सरस्वती देवी का स्वरुप वेदान्त शास्त्र का अर्थभूत एकमात्र बह्मतत्त्व ही है और जो भिन्न- भिन्न नाम और रूपों से जानी जाती हैं, वे माता सरस्वती हमें पूर्ण संरक्षण प्रदान करें।
८. अध्यात्ममधिदैवं च देवानां सम्यगीश्वरी।
प्रत्यगास्ते वदन्ती या सा मां पातु सरस्वती।।
जो देवी सरस्वती समस्त अध्यात्म देवों की सम्यक् अधीश्वरी अर्थात् प्रेरणात्मिका शक्तिस्वरूपा हैं और जो अध्यात्म एवं अधिदैव स्वरुपिणी हैं, जो हम सभी साधकों के अन्तःकरण में मध्यमा वाणी के रूप में विद्यमान हैं, वे माता सरस्वती देवी हम सभी को संरक्षण प्रदान करें।
९. ब्लूं चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम्।
यज्ञं दधे सरस्वती।
जो सत्य और मधुर वचन बोलने की प्रेरणा प्रदान करती हैं और उत्तम बुध्दि सम्पन्न क्रियाशील पुरुषों को उनका कर्त्तव्य बोध करती हुई सचेष्ट करती हैं, ऐसी देवी सरस्वती माँ ने हम साधकों के कल्याण के लिए यज्ञ धारण किया है।
१०. ऐं अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति।
अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि।।
हे सरस्वती माँ! आप समस्त मातृशक्तियों में, नदियों में तथा देवियों में भी सर्वश्रेष्ठ हैं।आप हमारे धन के अभाव को दूर करें और हमें हर प्रकार से सुसम्पन्न बनाने की कृपा करें।
११. यां विदित्वाखिलं बन्धं निर्मथ्याखिलवर्त्मना।
योगी याति परं स्थानं सा मां पातु सरस्वती।
जिसे देवी सरस्वती को योगी-जन बह्म विद्यारूप जानकर समस्त समस्त बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं तथा जिस सन्मार्ग के द्वारा पूर्णता की परम अविनाशी पद पद की प्राप्ति होती है, वे देवी सरस्वती हम सबको संरक्षण प्रदान करें।
वसन्त पंचमी पर संस्कृत श्लोक |