पूर्वसवर्ण (झयो होऽन्यतरस्याम्), तुगागम (छे च) और ङमुट् (ङमो ह्रस्वादचि ङमुण् नित्यम्) व्यंजन सन्धि के सूत्र-परिभाषा-नियम-उदाहरण / Purvsawarn-Tugaagm-Ghnmut-Vyanjan Sandhi

पूर्वसवर्ण,  तुगागम और ङमुट् व्यंजन सन्धि के सूत्र-परिभाषा-नियम-उदाहरण

पूर्वसवर्ण, तुगागम और ङमुट् सन्धि व्यंजन सन्धि के भेद हैं। इससे पहले हमने श्चुत्व सन्धिष्टुत्व सन्धिजश्त्व सन्धि - चर्त्व सन्धिअनुस्वार सन्धिपरसवर्ण सन्धि और अनुनासिक सन्धि का अध्ययन किया इस लेख में हम पूर्वसवर्ण सन्धि, तुगागम सन्धि और ङमुट् सन्धि के सूत्र, परिभाषा नियम और उदाहरण के बारे में जानेंगे।

पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि का सूत्र, परिभाषा, नियम और उदाहरण

पूर्वसवर्ण का अर्थ है - पूर्वपद का सवर्ण अर्थात् पूर्व = पूर्वपद और सवर्ण = समान वर्ण। पूर्वसवर्ण सन्धि व्यंजन सन्धि का एक भेद है।  इस सन्धि का सूत्र, परिभाषा, नियम और उदाहरण अग्रलिखित हैं।

पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि का सूत्र और परिभाषा

पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि का सूत्रझयो होऽन्यतरस्याम्। ८.४.६२।।
झय् प्रत्याहार के बाद हकार के स्थान पर विकल्प से पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि होती है।
पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि की परिभाषा - झयः परस्य हस्य पूर्वसवर्णो वा स्यात्। नादस्य घोषस्य संवारस्य महाप्राणस्य तादृशो वर्ग चतुर्थः।
अर्थात् झय् प्रत्याहार के बाद यदि ह वर्ण आता है तो ह के स्थान पर विकल्प से पूर्वसवर्ण प्राप्त होगा। यथा - वाग्घरिः/ वाग्हरिः। यहां पर नाद, घोष, संवार और महाप्राण होने पर झय् का सवर्ण चतुर्थ वर्ण होगा।

पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि का नियम 

पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि के नियम इसप्रकार से है- 
नियम (१)     पूर्वसवर्ण सन्धि होने से पहले उस पद में झलां जशोऽन्ते से जश्त्व होता है उसके पश्चात् ह के स्थान पर पूर्व सवर्ण होगा।
नियम (२)     पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि विकल्प से होती है।
नियम (३)     हकार  वर्ण के स्थान पर स्थानेऽन्तरतमः से नाद, घोष, संवार, महाप्राण से  पूर्वसवर्ण का चतुर्थ वर्ण ही होगा।

पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि के उदाहरण 

पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि के उदाहरण निम्नांकित है - 

(१)     वणिग् + हसति     =     वणिग्घसति / वणिग्हसति।
(२)     जगद् + हितम्     =     जगध्दितम् /  जगद्हितम्।
(३)     तद् + हितम्     =         तद्धितम् / तद्हितम्।
(४)     वाग् + हीनः     =         वाग्घीनः / वाग्हीनः।
(५)     पतद् + हिमम्     =     पतद्धिमम् / पतद्हिमम्।

तुगागम व्यंजन सन्धि का सूत्र, परिभाषा, नियम और उदाहरण

तुगागम सन्धि  व्यंजन सन्धि का एक भेद है। इस सन्धि में तुक् (च) का आगम होता है इसलिए इसे तुगागम व्यंजन सन्धि कहते है।

तुगागम व्यंजन सन्धि का सूत्र एवं परिभाषा

तुगागम  व्यंजन सन्धि का सूत्र -     छे च।। ६.१.७३।।
ह्रस्वस्य छे तुक् । अर्थात्  ह्रस्व स्वर छ से परे होने पर तुक का आगम होता है।

तुगागम व्यंजन सन्धि की परिभाषा - ह्रस्वात् स्वरात् छकारे परे तयो मध्ये तुगागमः भवति।
अर्थात् पदान्त ह्रस्व स्वर छकार के परे होने पर तुक् (च) का आगम होता है। यथा - ममच्छात्रः।
तुगागम व्यंजन सन्धि का वैकल्पिक सूत्र - पदान्ताद्वा।। ६.१.७६।। अर्थात्  पदान्त दीर्घ से छकार परे होने पर तुक् (च) आगम विकल्प से होता है। यथा - मात्राच्छदः / मात्राछन्दः।

तुगागम व्यंजन सन्धि के नियम 

नियम (१)     ह्रस्व स्वर के बाद छ होने पर उसके स्थान पर तुक् (च) का आगम होता है। यथा ममच्छात्रः।
ममच्छात्रः यहां पर  मम+ छात्रः में छे च सूत्र से तुक का आगम हुआ। यहां पर ह्रस्व अ मकार में है और उसके बाद छात्र का छकार है। ऐसी स्थिति में अकार को तुक् आगम हुआ। यहां अनुबन्ध लोप होकर त बचा। तुक् में ककार की इत संज्ञा हुई इसलिए कित् होने पर आद्यन्तौ टकितौ के नियम से तकार ह्रस्व अ के अन्त में बैठ गया। जिससे मम+ त+ छात्र बना।  स्तो श्चुना श्चुः सूत्र से चवर्ग का छकार होने कि स्थिति में तकार का श्चुत्व होकर चकार हो गया। अर्थात् मम+ च+ छात्रः बना वर्ण संयोजन होकर ममच्छात्रः यह सिद्ध हुआ।

 तुगागम व्यंजन सन्धि के उदाहरण

 तुगागम व्यंजन सन्धि के उदाहरण निम्नलिखित है - 

    (१)      संस्कृत + छात्रः     =     संस्कृतच्छात्रः। 
    (२)     मानव + छाया     =     मानवच्छाया।
    (३)     लक्ष्मी + छाया     =     लक्ष्मीच्छाया / लक्ष्मीछाया।
    (४)     पदवी + छाया     =     पदवीच्छाया / पदवीछाया।
    (५)     वृक्ष + छेदः     =         वृक्षच्छेदः।

ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि का सूत्र, परिभाषा, नियम और उदाहरण

ङमुट् व्यंजन सन्धि को ङमुडागम सन्धि भी कहते हैं। यह एक व्यंजन सन्धि का भेद है। 

ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि का सूत्र 

ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि का सूत्र है -  ङमो ह्रस्वादचि ङमुण् नित्यम्।। ८.३.३२।।

ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि का सूत्र की व्यख्या -  ह्रस्वात्परो यो ङम् तदन्तं यत्पदं तस्मात्परस्याचो ङमुट्। प्रत्यङ्ङात्मा।
अर्थात्   ह्रस्व स्वर के परे ङम् तथा पर में ह्रस्व अच् हो तो उस अच् में नित्य ङमुट् व्यंजन सन्धि होती है।

ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि की परिभाषा 

पूर्वपद के अन्त में ह्रस्व अच् / स्वर (अ, इ,उ,ऋ,लृ) के बाद यदि ङम् (ङ् ण् न् ) में से कोई व्यंजन हो और उत्तरपद के आदि में ह्रस्व अच् / स्वर  हो तो क्रमशः एक और ङम् हो जाता है।
विशेष - ङम् एक प्रत्याहार है । 

ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि के नियम

 नियम (१)     ङम् प्रत्याहार में ङ् ण् न् ये तीन वर्ण आते है।
नियम (२)     ह्रस्व अच् / स्वर के बीच में ङम् प्रत्याहार आने पर एक और ङम् हो जाता है अर्थात् द्वित्व हो जाता है।


ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि के उदाहरण 

ङमुट् / ङमुडागम व्यंजन सन्धि के उदाहरण अग्रलिखित है- 

    (१)     तिर्यङ् + अत्र         =     तिर्यङ्ङत्र।
    (२)     तस्मिन् + अपि     =     तस्मिन्नपि। 
    (३)     सुगण् + ईशः        =     सुगण्णीशः।
    (४)     सन् + अन्त         =     सन्नतः।
    (५)     गच्छन् + अस्ति     =    गच्छन्नस्ति।
पूर्वसवर्ण (झयो होऽन्यतरस्याम्), तुगागम (छे च) और ङमुट् (ङमो ह्रस्वादचि ङमुण् नित्यम्) व्यंजन सन्धि के सूत्र-परिभाषा-नियम-उदाहरण
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