अनुस्वार, परसवर्ण और अनुनासिक व्यंजन सन्धि के सूत्र-परिभाषा-उदाहरण-नियम Anusvar-Parsawarn-Anunasik-Sandhi

अनुस्वार, परसवर्ण और अनुनासिक व्यंजन सन्धि के सूत्र-परिभाषा-उदाहरण-नियम Anusvar-Parsawarn-Anunasik-Sandhi

अनुस्वार, परसवर्ण और अनुनासिक सन्धि  व्यंजन सन्धि के भेद हैं। अनुस्वार सन्धि में पदान्त मकार और नकार के स्थान पर अनुस्वार ( -ं ) हो जाता है परसवर्ण सन्धि में पदान्त अनुस्वार के बाद यय् होने पर अनुस्वार का परसवर्ण हो जाता है। अनुनासिक सन्धि में यदि अनुनासिक के बाद ह को छोड़कर कोई व्यंजन वर्ण आता है तो उसके स्थान पर अनुनासिक हो जाता है इस लेख में हम अनुस्वार और अनुनासिक व्यंजन सन्धि के सूत्र, परिभाषा, उदाहरण और नियम के बारे में पढ़ेंगे।

१. अनुस्वार व्यंजन सन्धि का सूत्र, परिभाषा, उदाहरण और नियम ।

२. अनुनासिक व्यंजन सन्धि का सूत्र, परिभाषा, उदाहरण और नियम ।

अनुस्वार व्यंजन सन्धि

अनुस्वार व्यंजन सन्धि, व्यंजन सन्धि का एक भेद है। पदान्त मकार के स्थान पर अनुस्वार ( -ं ) होना अनुस्वार व्यंजन सन्धि कहलाती है। 

अनुस्वार व्यंजन सन्धि  का सूत्र और परिभाषा

अनुस्वार व्यंजन सन्धि का सूत्र है -  मोऽनुस्वारः।। ८.३.२३।। यह सूत्र पद के अन्त में स्थित म् वर्ण को अनुस्वार करता है। 
अनुस्वार व्यंजन सन्धि की सूत्र की व्याख्या / परिभाषामान्तस्य पदस्यानुस्वारो हलि। अर्थात् पदान्त में स्थित मकार वर्ण का अनुस्वार हो जायेगा हल् अर्थात् व्यंजन के बाद में रहने पर।
अनुस्वार व्यंजन सन्धि की संस्कृत में परिभाषा -  व्यजने परे पदान्ते स्थितस्य मकारस्य अनुस्वार भवति। 
 जब पद के अन्त में म् आता है तथा उत्तरपद के प्रथम वर्ण में कोई भी व्यजंन वर्ण आये तो म् के स्थान पर अनुस्वार ( -ं ) हो जाता है और इसे ही अनुस्वार व्यंजन सन्धि कहते है। यथा - रामं वन्दे
अनुस्वार व्यंजन सन्धि का विधि सूत्र -  नश्चापदान्तस्य झलि।। ८.३.२४।।
अर्थात् झल् परे रहने पर अपदान्त स्थित नकार और मकार दोनों वर्णों के स्थान पर अनुस्वार हो जाता है। यथा - यशान् + सि = यशांसि। 

अनुस्वार व्यंजन सन्धि के नियम 

अनुस्वार व्यंजन सन्धि के नियम निम्नांकित है -
१. म् वर्ण का अनुस्वार ( -ं ) तब होता है जब म् के बाद कोई व्यंजन वर्ण हो। यथा -हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे।।
२. म् वर्ण के बाद यदि कोई स्वर वर्ण हो तो वह स्वर म् वर्ण के साथ जुड़ जायेगा। बालकम् + अपि = बालकमपि।।
३. अनुस्वार व्यंजन सन्धि में एक स्थानी के स्थान पर केवल एक अनुस्वार ही आदेश होगा। 

अनुस्वार व्यंजन सन्धि के उदाहरण

अनुस्वार व्यंजन सन्धि के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है -
        (१)     शिवम् + पूजयति = शिवं पूजयति। 
        (२)      सत्यम् + वद = सत्यं वद।
        (३)     फलम् + पतति = फलं पतति।
        (४)     दुःखम् + त्यज = दुःखं त्यज।
        (५)     पुस्तकम् + पश्य = पुस्तकं पश्य।
        (६)     गुरुम् + नमति = गुरुं नमति। 
        (७)     गृहम् + गत्वा = गृहं गत्वा।
        (८)     वाणीम् + वन्दे = वाणीं वन्दे।
        (९)     रामम् + नमति = रामं नमति।
        (१०)     पापम् + शान्तम् = पापं शान्तम्।

परसवर्ण व्यंजन सन्धि सूत्र, परिभाषा, नियम और उदाहरण

परसवर्ण सन्धि व्यंजन सन्धि का एक प्रकार/भेद है। परसवर्ण का अर्थ है - पर अर्थात् बाद में जो वर्ण है उस वर्ण का समवर्ग के वर्ण में से आदेश होना। परसवर्ण व्यंजन सन्धि को सूत्र और परिभाषा के माध्यम से समझते हैं।

परसवर्ण व्यंजन सन्धि का सूत्र और परिभाषा

परसवर्ण व्यंजन सन्धि का सूत्र -  अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः।। ८.४.५८।। स्पष्टम्। शान्तः।
पदान्त अनुस्वार के बाद यय् प्रत्याहार होने पर अनुस्वार का परसवर्ण व्यंजन सन्धि हो जाती है।
परसवर्ण व्यंजन सन्धि की परिभाषा - पदान्तानुस्वारस्य ययि परे परसवर्णः स्यात्। (पदान्त अनुस्वार के बाद यय् होने पर परसवर्ण हो जाता है।) 
अर्थात् अनुस्वार व्यंजन सन्धि में किये गये अनुस्वार के बाद यदि यय् (श् ष् स् ह् को छोडकर सभी व्यंजन) वर्ण हो तो अनुस्वार के स्थान पर  परसवर्ण व्यंजन सन्धि से उत्तरपद में स्थित आदि वर्ण का पंचम वर्ण विकल्प से हो जाता है। इसमें नित्य सन्धि होती है। यथा - 
मुञ्चति - मुं + चति।
नन्दति - नं + दति।
वैकल्पिक परसवर्ण विधायक विधि सूत्र - वा पदान्तस्य।। ८.४.५९।।
पदान्त अनुस्वार  के स्थान पर यय् के परे रहने पर विकल्प से परसवर्ण होता है। पदान्ते स्थितस्य अनुस्वारस्य तु विकल्पेन आदेशो भवति। (पदान्त अनुस्वार का विकल्प से परसवर्ण होता है।) यह सूत्र अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः का बाधक सूत्र है। इससे परसवर्ण व्यंजन सन्धि में विकल्प से सन्धि होती है।

परसवर्ण व्यंजन सन्धि के नियम

परसवर्ण व्यंजन सन्धि के नियम इस प्रकार हैं - 
नियम (१) अनुस्वार के बाद यय् वर्ण (यय् एक प्रत्याहार है, जिसमें श् ष् स् ह् को छोडकर सभी व्यंजन वर्ण आते हैं।) आने पर ही परसवर्ण होगा।
नियम (२) परसवर्ण व्यंजन सन्धि में वा पदान्तस्य इस सूत्र के कारण परसवर्ण व्यंजन सन्धि विकल्प से होती है अनिवार्य रुप से नहीं।
नियम (३) परसवर्ण व्यंजन सन्धि तभी होगी जब पहले उस पद में नश्चापदान्तस्य झलि  सूत्र से अनुस्वार व्यंजन सन्धि हो रखी हो। यथा - शान्तः।
शान्तः इस पद का सन्धि-विच्छेद होगा - शाम् + तः। यहां पर शाम् के मकार का नश्चापदान्तस्य झलि सूत्र से अनुस्वार व्यंजन सन्धि होकर मकार का अनुस्वार हुआ और शां + तः रुप बना। उत्तरपद का आदि वर्ण तकार यय् प्रत्याहार होने पर अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः इस सूत्र से अनुस्वार का तकार वर्ण का सवर्णी (त् थ् द् ध् न्) होगा और स्थानेऽन्तरतमः सूत्र से नकार का ग्रहण होगा और परसवर्ण व्यंजन सन्धि होगी।

परसवर्ण व्यंजन सन्धि के उदाहरण

परसवर्ण व्यंजन सन्धि के उदाहरण निम्नलिखित हैं - 
        (१)     अं + कितः = अङ्कितः। (नित्य)
        (२)     गम् + गा =  गंगा / गङ्गा।
        (३)     कार्यम् + करोति = कार्यं करोति / कार्यङ्करोति।
        (४)     नगरम् + चलति = नगरं चलति / नगरञ्चलति।
        (५)     सम् + यमः = संयमः / सँय्यमः।
        (६)    अम् + बरम् = अंबरम् / अम्बरम्।
        (७)    ग्रामम् + गच्छति = ग्रामं गच्छति / ग्रामङ्गच्छति।
        (८)    कं + कटम् = कंटकम् / कण्टकम्।
        (९)  अम् + कनम् = अंकनम् / अङ्कनम्।
        (१०) गुम् + जति = गुंजति / गुञ्जति।

अनुनासिक व्यंजन सन्धि

अनुनासिक सन्धि व्यंजन सन्धि का एक भेद है। मुख और नासिका उच्चारित वर्ण अनुनासिक कहलाते हैं - (मुखनासिकावचनोऽनुनासिकः।) हल् अनुनासिक वर्ण में ङ् , ञ् , ण् , न् , म् वर्ण ग्रहण किये जाते हैं और इन वर्णो की सन्धि को ही अनुनासिक व्यंजन सन्धि कहते है।

अनुनासिक व्यंजन सन्धि का सूत्र और परिभाषा

अनुनासिक सन्धि का सूत्र है - यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा।। ८.४.४५।। यर् प्रत्याहार अर्थात् ह् को छोड़कर कोई भी व्यंजन वर्ण के बाद में यदि अनुनासिक वर्ण हो तो अनुनासिक व्यंजन सन्धि हो जाती है।
अनुनासिक व्यंजन सन्धि की परिभाषा- यरः पदान्तस्यानुनासिके परेऽनुनासिको वा स्यात्।। अर्थात् यर प्रत्याहार (क् से म् तक तथा य् र् ल् व् श् ष् स् ) के बाद यदि अनुनासिक ( ङ् , ञ् , ण् , न् , म् ) वर्ण आवें तो यर् के स्थान पर विकल्प से (पंचम वर्ण) अनुनासिक व्यंजन सन्धि हो जाती है। चित् + मात्रम् = चिन्मात्रम्     (त् + म् = न्)
 अनुनासिक-व्यंजनेषु परेषु पदान्तेषु स्थितानां वर्गीयव्यंजनानां तत्-तत्- वर्गीय- पंचमः अनुनासिकः वा वर्णः विकल्पेन आदेशः भवति।
अर्थात् यदि पूर्व पद के अन्त में यर् प्रत्याहार (ह् वर्ण को छोडकर कोई भी व्यंजन) हो और उत्तरपद के आदि में अनुनासिक (प्रत्येक वर्ग का अन्तिम या पंचम वर्ण- ङ् ञ् ण् न् म्) हो तो यर् का विकल्प से उसी वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है और इसी को अनुनासिक व्यंजन सन्धि कहते हैं।

अनुनासिक व्यंजन सन्धि के नियम

अनुनासिक व्यंजन सन्धि के नियम निम्नांकित हैं - 
नियम (१)  अनुनासिक व्यंजन सन्धि के नियम से यह सन्धि विकल्प से होगी अर्थात् यह व्यक्ति विशेष कि इच्छा पर निर्भर है वह सन्धि करे या न करे । परन्तु विकल्प पक्ष में यदि अनुनासिक नहीं होगा तो वहाँ पर जश्त्व सन्धिः के अनुसार अपने वर्ग का तृतीय वर्ण ही होगा। यथा- वाक् + मूलम्  = वाङ्मूलम् या वाग्मूलम्।
विकल्प से 
वाङ्मूलम् - अनुनासिक व्यंजन सन्धि।
वाग्मूलम् - जश्त्व व्यंजन सन्धि। 
नियम (२) प्रत्यये भाषायां नित्यम् अर्थात्  यदि उत्तरपद का आदि या प्रथम अनुनासिक वर्ण प्रत्ययान्त हो तो वहां नित्य अनुनासिक ही होगा। यथा चित् + मयम् = चिन्मयम् (चेतनमय) 
उक्त उदाहरण में उत्तर पद (मयम्) में मयट् प्रत्यय है, जिसका आदि वर्ण मकार अनुनासिक है अतः यहां पर नित्य अनुनासिक व्यंजन सन्धि होगी। यहां पर विकल्प नहीं है।
नियम (३) अनुनासिक व्यंजन सन्धि में सामान्यतः य् र् ल् व् श् ष् स् के उदाहरण प्राप्त नहीं होते है।

अनुनासिक व्यंजन सन्धि के उदाहरण

अनुनासिक व्यंजन सन्धि के  उदाहरण निम्नांकित है -
 
    (१)     दिक् + नाथः =   दिङ्नाथः / दिग्नाथः।
    (२)     षट् + मयूखाः = षण्मयूखाः / षड्मयूखाः।
    (३)     एतत् + मुरारिः = एतन्मुरारिः / एतद्मुरारिः।
    (४)     जगत् + नाथः = जगन्नाथः / जगद्नाथः।
    (५)     वाक् + नियमः = वाङ्नियमः / वाग्नियमः।
    (६)     धिक् + मूर्खः = धिङ्मूर्खः / धिग्मूर्खः।
    (७)     सत् + निधानम् = सन्निधानम् / सद्निधानम्।
    (८)     तत् +नयति = तन्नयति / तद्नयति।
    (९)     विद्युत् + नगरी = विद्युन्नगरी / विद्युद्नगरी।
    (१०)     तत् + नयनम् = तन्नयनम् / तद्नयनम्।

प्रत्यये भाषायां नित्यम् अनुनासिक व्यंजन सन्धि के उदाहरण

प्रत्यये भाषायां नित्यम् अर्थात्  लौकिक प्रयोगों में उत्तरपद का आदि अनुनासिक वर्ण प्रत्यय युक्त होने पर नित्य अनुनासिक व्यंजन सन्धि होगी। नित्य  अनुनासिक व्यंजन सन्धि के उदाहरण निम्नांकित है - 

    (१)     तत् + मयम् = तन्मयम्     (त् + म् = न्)
    (२)     चित् + मात्रम् = चिन्मात्रम्     (त् + म् = न्)
    (३)     अप् + मयम् = अम्मयम्     (प् + म् = म्) 
    (४)     तत् + मात्रम् = तन्मात्रम्     (त्+ म् = न्)
    (५)     वाक् + मयम् = वाङ्मयम्     (क् + म् = ङ्)
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