व्यंजन सन्धि के भेद - जश्त्व सन्धि - चर्त्व सन्धि की परिभाषा, सूत्र, उदाहरण और नियम
व्यंजन सन्धि के बतायेंगे सोलह भेदों (देखे) में से हम इस लेख में व्यंजन सन्धि के जश्त्व सन्धि - चर्त्व सन्धि विषय में पढ़ेंगे। श्चुत्व व्यंजन और ष्टुत्व व्यंजन सन्धि के विषय में हमने इससे पहले लेख में पढ़ा है। श्चुत्व सन्धि और ष्टुत्व सन्धि समझने के लिए (देखे श्चुत्व सन्धि और ष्टुत्व सन्धि)। सन्धि किसे कहते है, स्वर सन्धि तथा व्यंजन सन्धि समझने के लिए क्लिक करे -
उपरोक्त जश्त्व सन्धि - चर्त्व सन्धि के सूत्र, परिभाषा, उदाहरण और नियम अग्रलिखित हैं-
जश्त्व सन्धि के भेद, सूत्र, परिभाषा, नियम और उदाहरण
जश्त्व सन्धि एक व्यंजन सन्धि है। जश्त्व सन्धि के दो भेद हैं, जो निम्नांकित है-
१. पदान्त जश्त्व सन्धि
२. अपदान्त जश्त्व सन्धि
पदान्त जश्त्व सन्धि का सूत्र
पदान्त जश्त्व सन्धि का सूत्र - झलां जशोऽन्ते।।८.२.३९।।
झल् और जश् ये दोनों प्रत्याहार है। झल् = प्रत्याहार में झ, भ, घ, ढ, द, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह- ये वर्ण आते हैं अर्थात् कुचुटुतुपु या प्रत्येक वर्ग के पंचम वर्ण को छोड़कर सभी वर्ण तथा ऊष्म वर्ण (श,ष,स,ह) आते हैं।
जश् = इस प्रत्याहार में ज,ब,ग,ढ,द ये वर्ण या अक्षर आते है।
पदान्त जश्त्व सन्धि की परिभाषा
पदान्त जश्त्व सन्धि की परिभाषा - पदान्ते झलां जशः स्युः। यथा जगदीशः। अर्थात् पदान्ते स्थितानां झल् प्रत्याहारवर्णानां स्थाने जशः प्रत्याहारः भवति।
अर्थात् पद के अन्त में स्थित झल् प्रत्याहार के स्थान पर जश् प्रत्याहार आदेश होता है। जैसे - जगत्+ ईशः = जगदीशः।
अर्थात् यदि प्रथम पद या पूर्वपद का अन्त वर्ण झल् अर्थात् कुचुटुतुपु का प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ या ऊष्म वर्ण (श,ष,स,ह) होते हैं, तो उनके स्थान पर जश् (ज,ब,ग,ड,द) हो जाता है।
अपदान्त जश्त्व सन्धि का सूत्र और परिभाषा
अपदान्त जश्त्व सन्धि का सूत्र - झलां जश् झशि।।८.४.५३।।
अपदान्त जश्त्व सन्धि का परिभाषा - झलां जश् स्युः झशि संहितायाम्।। यथा - सिद्धिः।
अर्थात् झल् के स्थान पर जश् आदेश हो जाता है, झश् के परे रहने पर।
अर्थात् पूर्वपद का अन्तिम वर्ण झल् होने पर तथा पर या उत्तरपद में झश् होने पर भी जश् आदेश हो जाता है। जैसे - सिध् + धिः = सिद्धिः।
जश्त्व सन्धि के नियम
जश्त्व सन्धि के नियम के लिए सर्वप्रथम झल् और जश् प्रत्याहार को समझ ले। अर्थात् झल् प्रत्याहार में कौन-कौन से वर्ण आते हैं तथा जश् प्रत्याहार में कौन-कौन से। यदि यह हमें याद हो जायेगे तो जश्त्व सन्धि के उदाहरण और नियम समझने में आसानी होगी।
जश्त्व सन्धि के उदाहरण और नियम को हम यहां समझते हैं-
(१) जगदीशः - जगत् + ईशः (संसार का स्वामी)।
जश्त्व सन्धि के नियम
यहां पर जगत्+ईशः में जगत् शब्द का ईश शब्द के साथ मेल हुआ। यहां पर जगत् शब्द का अन्तिम वर्ण त् है, जो एक झल् प्रत्याहार का वर्ण है। अब सन्धि के अनुसार झल् के स्थान पर जश् (ज,ब,ग,ड,द) आदेश होगा। परन्तु हमारे पास जश् प्रत्याहार में पांच वर्ण प्राप्त होते हैं। अतः इनमें से किस वर्ण का प्रयोग किया जाए, इसलिए यहाँ पर एक सूत्र स्थानेऽन्तरतमः लगेगा। इस सूत्र के अनुसार उच्चारण स्थान की समानता वाले वर्ण का ग्रहण किया जायेगा। अब यहां तकार वर्ण का उच्चारण स्थान दन्त है और जश् प्रत्याहार में दन्त्य उच्चारण स्थान वाला वर्ण द् है। इसलिए झलां जशोऽन्ते सूत्र से तकार के स्थान पर दकार हो जायेगा। यथा- जगद् +ईशः दोनों पद का सम्मेलन जगदीशः शब्द बनता हैं। जश्त्व सन्धि के अन्य उदाहरण भी इसी तरह समझे।
जश्त्व व्यंजन सन्धि के उदाहरण
(१) वाक् + ईशः = वागीशः (क् =ग्)
(२) अच् + अन्तः = अजन्तः (च् = ज्)
(३) षट् + दर्शनम् = षड्दर्शनम् (ट् =ड्)
(४) तत् + एवम् = तद्देवम् (त् = द्)
(५) सुप् + अन्तः = सुबन्तः (प् = ब्)
(६) लभ् + धा = लब्धा (भ् = ब)
(७) उपलभ् + धिः = उपलब्धिः (भ् = ब्)
(८) समृध् + धिः = समृद्धिः ( ध् = द्)
(९) कुध् + धः = कुद्धः (ध् = द् )
(१०) जगत् + बन्धुः = जगद्बन्धुः (त् = द्)
चर्त्व व्यंजन सन्धि का सूत्र, परिभाषा, उदाहरण और नियम
चर्त्व एक व्यंजन सन्धि का भेद है। इस व्यंजन सन्धि में झल् के स्थान पर चर् आदेश हो जाता है, जबकि इससे पहले वर्णित जश्त्व व्यंजन सन्धि में झल् के स्थान पर जश् आदेश होता है।
चर्त्व व्यंजन सन्धि का सूत्र
चर्त्व व्यंजन सन्धि का सूत्र - खरि च।। ८.४.५५।।
झलां जश् झशि से झलां तथा अभ्यासे चर्च से चर की अनुवृत्ति आती है।
खर् एक प्रत्याहार है जिसमें ख् फ् छ् ठ् थ् च् ट् त् क् य् श् ष् स्। वर्ण आतें हैं।
चर्त्व व्यंजन सन्धि की परिभाषा
चर्त्व व्यंजन सन्धि की परिभाषा - खरि परे झलां चरः स्युः।
अर्थात् यदि पूर्वपद का अन्तिम वर्ण झल् प्रत्याहार का हो और उत्तरपद का प्रथम वर्ण खर् प्रत्याहार का हो तो झल् प्रत्याहार वर्णों के स्थान पर चर् प्रत्याहार हो जाता है और इसे ही चर्त्व व्यंजन सन्धि कहते है। यथा - उत्पन्नः, दिक्पालः।
चर्त्व व्यंजन सन्धि की परिभाषा - ञमङणनान् वर्जयित्वा वर्गीयव्यंजनानां कर्कशव्यंजने (खरि) परे
तत्तद्वर्गीयप्रथमव्यंजनम् आदेशः भवति।
चर्त्व व्यंजन सन्धि के नियम
चर्त्व व्यंजन सन्धि के नियम में पूर्व पद का अन्तिम वर्ण झल् प्रत्याहार (प्रत्येक वर्ग का प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण और ऊष्म वर्ण{श,ष,स}) का तथा उत्तरपद का प्रथम वर्ण या आदि वर्ण खर् प्रत्याहार (क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,श,ष,स,) होने पर झल् प्रत्याहार के वर्ण के स्थान पर चर् प्रत्याहार ( च् ट् त् क् प् श् ष् स् ) हो जाता है।
जैसे - उत्पन्नः उद् + पन्नः यहाँ पर पूर्वपद का अन्तिम वर्ण उद् का दकार झल् प्रत्याहार है और उत्तरपद पन्नः का आदि वर्ण पकार (प) खर् प्रत्याहार है। अतः खरि च सूत्र से झल् प्रत्याहार दकार(द्) के स्थान पर का तकार (त्) आदेश हुआ जिस कारण उत्पन्नः शब्द बना। अग्रलिखित चर्त्व व्यंजन सन्धि के अन्य उदाहरण इसी तरह समझे।
चर्त्व व्यंजन सन्धि के उदाहरण
चर्त्व व्यंजन सन्धि के उदाहरण निम्नांकित है-
उदाहरण -
(१) सद् + कारः = सत्कारः (द् = त्)
(२) तद् + छविः = तच्छविः (द् = च्)
(३) दिग् + पालः = दिक्पालः (ग् = क्)
(४) विपद् + कालः = विपत्कालः (द् = त्)
(५) अस्मद् + पुत्रः = अस्मत्पुत्रः (द् = त्)
(६) षड् + खाद्यानि = षट्खाद्यानि (ड् = ट्)
(७) उद् + स्थानम् = उत्थानम् (द् + त् )
(८) विराड् + षुरुषः = विराट्पुरुषः (ड् =ट्)
(९) लभ् + स्यते = लप्स्यते (भ् = प् )
(१०) तद् + परः = तत्परः (द् = त्)
जश्त्व व्यंजन सन्धि - चर्त्व व्यंजन सन्धि |
Bahut bahut dhanyawad sir,
ReplyDeleteSir visarg sandhi ke video ya koi link ho to plz btaya,
विसर्ग सन्धि
Deletehttps://www.uttarakhandsanskrit.com/2023/07/what-is-visarga-sandhi-definition-and.html