अच् सन्धिः (Ach Sandhi) या स्वर सन्धि (Swar Sandhi) किसे कहते हैं तथा स्वर सन्धि के भेद और उदाहरण
अच् सन्धिः (Ach Sandhi) अचों का योग है। अच् एक प्रत्याहार है, जिसके अन्तर्गत अ,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ वर्ण आते हैं। अच् सन्धिः (Ach Sandhi) में इनके ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, उदात्त, अनुदात्त, स्वरित, अनुनासिक, अननुनासिक इन सभी वर्णों या स्वरों का ग्रहण होता है। अचानां सन्धिरेव अच् सन्धिः और ये ही अच् स्वर है। अतः हिन्दी में अच् सन्धिः को ही स्वर सन्धि कहा जाता है। सन्धि किसे कहते है। जानने के लिए देखे-
स्वर सन्धि किसे कहते हैं या स्वर सन्धि की परिभाषा
पूर्व तथा पर स्वरों के मिलने से जो विकार होता है उसे स्वर सन्धि कहते (Swar Sandhi) हैं। यथा - पुस्तक+आलय = पुस्तकालय। यहाँ पर पूर्व पद का अन्तिम वर्ण 'अ' स्वर है और पर या उत्तर पद का प्रथम वर्ण 'आ' भी स्वर है। दोनों पूर्व और पर स्वर होने के कारण यहाँ स्वर सन्धि (Swar Sandhi) है।
स्वरेण सह स्वरस्य मेलनमेव स्वर सन्धिः इत्युच्यते। अर्थात् स्वरस्य स्थाने आदेशः स्वर सन्धिः च उच्यते। यथा - इति + अपि = इत्यपि। अत्र पूर्वपदस्य 'इति' अस्य अन्तिम वर्णः 'इकारः अस्ति, उत्तरपदस्य 'अपि' इत्यस्य आदि वर्णः 'अकारः' अस्ति। अत्र द्वावपि स्वरावेव। इकोयणचि इति सूत्रेण इकारस्य स्थाने यकारादेशः।
स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर सन्धि (Swar Sandhi) कहते हैं।
स्वर संधि के भेद या स्वर संधि के प्रकार 3
स्वर-संधिः अष्टभिः प्रकारैः विभक्तो वर्तते। संस्कृत व्याकरण में स्वर संधि के आठ भेद माने गये हैं-
१. दीर्घ संधि २. गुण संधि
३. यण संधि ४. वृद्धि संधि
५. अयादि संधि ६. पूर्वरूप संधि
७. पररूप संधि ८. प्रकृतिभाव संधि
ये ही स्वर संधि (Swar Sandhi) के प्रकार या स्वर संधि के भेद है। जिनका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है-
१. दीर्घ सन्धिः
अकः सवर्णे दीर्घः।। ६.१.१०१।।
अक प्रत्याहार (अ,इ,उ,ऋ,लृ) के बाद सवर्ण आने पर दीर्घ सन्धि होती है। यथा- हिमालयः, रवीन्द्रः, भानूदयः।
अकः सवर्णेऽचि परे पूर्वपरयोः दीर्घ एकादेशः स्यात्।
अर्थात् जब अ,इ,उ,ऋ,लृ (अक) के बाद इनके समान स्वर (अच्) वर्ण आतें हैं, तो पूर्व और पर दोनों के स्थान पर समजातीय दीर्घ हो जाता है। यथा - हिमालय, रवीन्द्र, भानूदय, मातॄण
दीर्घ सन्धि के उदाहरण-
१. अ + अ = आ
हिम+आलय= हिमालय।
२. इ + इ = ई
रवि+इन्द्र= रवीन्द्र।
३. उ + उ = ऊ
भानु+उदय = भानूदय।
४. ऋ + ऋ = ॠ
मातृ+ऋण= मातॄण।
2. गुण संधि
आद्गुणः।६.१.८७।।
अवर्णादचि परे पूर्वपरयोरेको गुण आदेशः स्यात्।
अवर्ण से स्वर (अच्) परे होने पर पूर्व (प्रथम पद का अन्तिम वर्ण) और पर (उत्तर पद का प्रथम वर्ण) दोनों के स्थान पर एक गुणसंज्ञक आदेश होता है।
यहाँ गुणसंज्ञक का मतलब
गुण संज्ञा है और
गुण संज्ञा का सूत्र है-
अदेङ् गुणः।१.१.२।। (अत् एङ् च गुणसंज्ञः स्यात् अर्थात् अत् (अ) और एङ्- ए,ओ गुणसंज्ञक होते हैं।) संज्ञा सूत्र जानने के लिए
क्लिक करे संज्ञा-प्रकरणम्।जब अ या आ के बाद इ/ई, उ/ऊ, ऋ या लृ आते हैं, तो इनके स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर् और अल् हो जाता है, तब ही गुण संधि होती है। यथा- गणेश, रमेश, सर्वोदय, पृष्ठोपरि, देवर्षि, महर्षि, ममल्कार, तवल्कार।
गुण संधि के उदाहरण
१. अ/आ + इ/ई = ए
गण्+ ईशः = गणेशः
रमा+ईशः = रमेशः
२. अ/आ + उ/ऊ = ओ
सर्व+ उदयः = सर्वोदयः
पृष्ठ+ उपरि = पृष्ठोपरि
३. अ/आ + ऋ = अर
देव+ ऋषिः = देवर्षिः
महा+ ऋषिः = महर्षिः
४. अ/आ + लृ = अल्
मम+लृकारः = ममल्कारः
तव+लृकारः = तवल्कारः
3. यण संधि
इको यणचिः ।६.१.७७।।
इक (इ,उ,ऋ,लृ) के स्थान पर यण आदेश हो जायेगा अच् के परे रहने पर।
अर्थात् इ,उ,ऋ और लृ से परे अच् (स्वर) होने पर इ,उ,ऋ और लृ के स्थान पर य,व,र और ल आदेश हो जाने पर यण संधि कहलाती है। यथा - इत्यपि, मध्वरिः, पित्राज्ञा और लाकृतिः।
यण संधि के उदाहरण
१. इ/ई + स्वर = य
इति+ अपि = इत्यपि
२. उ/ऊ + स्वर = व
मधु+ अरिः = मध्वरिः
३. ऋ + स्वर = र
पितृ+ आज्ञा = पित्राज्ञा
४. लृ + स्वर = ल
लृ+ आकृति = लाकृति
4. वृद्धि संधि
वृद्धिरेचि।६.१.८८।।
अवर्ण से एच् (ए,ओ,ऐ,औ) परे होने पर, पूर्व और पर के स्थान पर वृद्धिसंज्ञक एक वर्ण होता है।
अर्थात् जब अ/आ के पश्चात ए,ओ,ऐ,औ वर्ण आते हैं तो दोनों पर और पूर्व के स्थान पर ऐ और औ हो जाता है, इसी को वृद्धि संधि कहते है। यथा - धनैषणा, वनौषधि।
वृद्धि संधि के उदाहरण
१. अ/आ + ए/ऐ = ऐ
धन+ एषणा= धनैषणा
२. अ/आ + ओ/औ = औ
वन+ औषधि= वनौषधि
5. अयादि संधि
एचोऽयवायावाः।६.१.७८।
एच् (ए,ओ,ऐ,औ) के स्थान पर अय्, अव्, आय् और आव् आदेश होते हैं अच् (स्वर) परे रहने पर।
अर्थात् जब ए,ओ,ऐ और औ के बाद कोई स्वर आये तो इनके स्थान पर क्रमशः अय्, अव् आय् और आव् हो जाते हैं, जिसे अयादि संधि कहते है। यथा - चयनम्, पवन, नायक और पावक।
अयादि संधि के उदाहरण
१. ए + स्वर = अय्
चे+अनम् = चयनम्।
२. ओ + स्वर = अव्
पो+ अन = पवन
३. ऐ + स्वर = आय्
नै+अक= नायक
४. औ + स्वर = आव्
पौ+अक = पावक
6. पूर्वरुप संधि
एङः पदान्तादति। ६.१.१०९।
पद के अन्त एङ् (ए,ओ) तथा परे ह्रस्व अकार होने पर पूर्व और पर के स्थान पर पूर्वरूप हो जाने पर पूर्वरूप सन्धि कहलाती है। यथा- हरेऽव और कोऽपि।
पूर्वरूप सन्धि के उदाहरण
१. ए + अ = ए
हरे+एव = हरेऽव
२. ओ + अ = ओ
को+अपि = कोऽपि
7. पररुप संधि
एङि पररूपम्। ६.१.९४।
अन्त्य अ वर्ण युक्त उपसर्ग से परे एङ्(ए,ओ) धातु धातु होने पर पर वर्ण आदेश होता है।
अर्थात् जब किसी उपसर्ग का अन्तिम वर्ण अ होता तथा उत्तर पद का आदि वर्ण एङ् (ए, ओ) धातु से युक्त हो तो दोनों के स्थान पर पररूप हो जाता है, इसकारण इसे पररूप संधि कहते है। यथा प्रेजते और उपोषति।
पररूप संधि के उदाहरण
१. अ + ए = ए
प्र+एजते = प्रेजते।
२. अ + ओ = ओ
उप+ओषति = उपोषति।
8. प्रकृतिभाव संधि
प्लुत प्रगृह्या अचि नित्यम्।६.१.१२५।
अच् के परे रहने पर प्लुत और प्रगृह्य को प्रकृतिभाव सन्धि होती है। प्रकृतिभाव सन्धि में सन्धि होने पर भी संधि का अभाव दिखाई देता है। यथा - पश्य गुरो३ एषः मां ताडयति और कवी ऐतौ।
१. प्लुत प्रकृतिभाव सन्धि का उदाहरण
पश्य गुरो३ + एषः मां ताडयति =पश्य गुरो३ एषः मां ताडयति।
२. प्रगृह्य प्रकृतिभाव सन्धि का उदाहरण
कवी+एतौ = कवी एतौ (यहां पर यण सन्धि होने पर भी प्रकृतिभाव के कारण यण सन्धि नहीं हुई।)
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