मित्रता पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
सतां सप्तपदं मैत्रमाहुः सन्तः कुलोचिताः।। महा. वनपर्व 260/35
सतां सप्तपदं मैत्रम्।। महा. शान्तिपर्व 138/56
कुलीन सत्पुरुष यह बताते हैं कि सत्पुरुषों में सात कदम चलने पर मैत्री हो जाती है या मित्र बन जाते हैं।
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सौहृदात् सर्वभूतानां विश्वासो नाम जायते।। महा. वनपर्व 297/43
मित्रता के कारण ही सभी प्राणियों में एक दूसरे के प्रति विश्वास होता है।
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बहुमित्रकरः सुखं वसते।। महा. वनपर्व 313/13
बहुत से मित्र बनाने वाला प्राणी ही सुख से रहता है।
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मित्र पर संस्कृत में श्लोक
सौहृदान्यपि जीर्यन्ति कालेन परिजीर्यतः।
सौहृदं ये त्वया ह्यासीत् पूर्वं सामर्थ्यबन्धनम्।। महा. आदिपर्व 130/6
जैसे समय बीतने लगता है वैसे मित्रता भी घटने लगती है। जब हम दोनों समान शक्तिशाली थे तब मित्रता सामर्थ्य के अनुसार थी।
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न सख्यमजरं लोके हृदि तिष्ठति कस्यचित्।
कालो ह्येनं विहरति क्रोधो वैनं हरत्युत।। महा. आदिपर्व 130/7
हमेशा किसी भी मनुष्य के हृदय में मित्रता नहीं बनी रहती है। मित्रता या तो समय के साथ कम हो जाती है या क्रोध के कारण समाप्त हो जाती है।
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न दरिद्रो वसुमतो नाविद्वान् विदुषः सखा।
न शूरस्य सखा क्लीबः सखिपूर्वं किमिष्यते।। महा. आदिपर्व 130/9
निर्धन की धनवान से मित्रता नहीं होती। विद्वान की मूर्ख से और शूरवीर की कायर पुरुष से मित्रता नहीं हो सकती है। अतः मित्रता का पूर्व में कोई विश्वास नहीं है।
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मित्रता पर Hindi में श्लोक
ययोरेव समं वित्तंययोरेव समं श्रुतम्।
तयोर्विवाहः संख्यं च न तु पुष्टविपुष्टयोः।।महा. आदिपर्व 130/19
धन की दृष्टि से जो सम्मान है या जिनकी कुल और विद्या सम्मान स्तर की है उन्हीं के बीच मैत्री और विवाह संबंध हो सकते हैं गरीब अमीर और विद्वान मूर्ख के बीच नहीं।
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साम्याद्धि संख्यं भवति वैषम्यान्नोपपद्यते।। महा. आदिपर्व 130/67
सम्मान विचारों वालों के बीच ही मित्रता होती है अलग-अलग विचार के लोगों के के बीच में मित्रता नहीं होती है।
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सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः।
आतुरस्य भिषङ् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः।। महा. वनपर्व 313/64
विदेश भ्रमण के लिए सहयात्री मित्र होता है। घर में रहने वाले मनुष्य के लिए उसकी पत्नी उसका मित्र होता है। बीमार व्यक्ति के लिए दवा ही उसका मित्र है। और मरने वाले के लिए दान ही उसका मित्र होता है।
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Mitrata Par Sanskrit Shlok With Hindi Arth.
न तन्मित्रं यस्य कोपाद् बिभेति यद् वा मित्रं शंकितेनोपचर्यम्।
यस्मिन् मित्रे पितरीवाश्वसीत तद्वै मित्रं संगतानीतराणि।। महा. उद्योगपर्व 36/37
के क्रोध करने से डर लगे या मन में शंका रखते हुए जिसकी सेवा की जाए ऐसा मनुष्य मित्र नहीं होता है। मित्र तो वही होता है। जिस पर पिता के समान विश्वास किया जा सके अन्य लोग तो केवल साथ रहने वाले होते हैं।
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यः कश्चिदप्यसम्बद्धो मित्रभावेन वर्तते।
स एव बन्धुस्तन्मित्रं सा गतिस्तत् परायणम्।। महा. उद्योगपर्व 36/38
जिसके साथ पहले कोई संबंध ना हो परंतु वह मनुष्य मित्र की तरह व्यवहार करता है वही मनुष्य मित्र सहायक और सहारा होता है।
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मत्या परीक्ष्य मेधावी बुद्ध्या सम्पाद्य चासकृत।
श्रुत्वा दृष्ट्वाथ विज्ञाय प्राज्ञैः मैत्रीं समाचरेत।। महा. उद्योगपर्व 39/41
बुद्धिमान मनुष्य को अपनी बुद्धि से परीक्षा करके और अच्छी तरह परखकर अन्य लोगों के विचार सुनकर देखकर और उन्हें समझ कर बुद्धिमान मनुष्य के साथ मित्रता करनी चाहिए।
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sanskrit shloka on friendship with hindi meaning
ययोश्चित्तेन वा चित्तं निभृतिं निभृतेन वा।
समेति प्रज्ञया प्रज्ञा तयोः मैत्री न जीर्यते।। महा. उद्योगपर्व 39/47
जब दो व्यक्तियों का मन से मन गुप्त से गुप्त रहस्य और बुद्धि से बुद्धि मिल जाती है तब उनकी मित्रता समाप्त नहीं होती।
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दुर्बुद्धिमकृतप्रज्ञं छन्नं कूपं तृणैरिव।
विवर्जयीत मेधावी तस्मिन् मैत्री प्रणश्यति।।महा. उद्योगपर्व 29/48
बुद्धिमान मनुष्य को घास के तिनकों से ढके हुए कुइयां के समान मूर्ख और विचार ही पुरुष का साथ छोड़ देना चाहिए ऐसे व्यक्ति के साथ मित्रता नहीं की जा सकती।
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अवलिप्तेषु मूर्खेषु रौद्रसाहसिकेषु च।
तथैवापेत धर्मेषु न मैत्रीमाचरेद् बुधः।। महा. उद्योगपर्व 39/49
विद्वान पुरुष को अभिमानी मूर्ख क्रोधी साहसिक तथा धर्म हीन मनुष्यों के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए।
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भग्ने सैन्ये यः समेयात् स मित्रम्।। महा. द्रोणपर्व 2/19
सेना के भाग जाने पर भेजो साथ देता है वही मित्र है।
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मित्र पर संस्कृत में श्लोक हिंदी अर्थ सहित
यौवनात् सम्बन्धकाल्लोके विशिष्टं संगतं सताम्।
सद्भिः सह नरश्रेष्ठ प्रवदन्ति मनीषिणः।। महा. द्रोणपर्व 4/13
हे श्रेष्ठ पुरुष! पारिवारिक संबंध की तुलना में सब जनों के साथ हुई मित्रता को मनीषी महापुरुष श्रेष्ठ बताते हैं।
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आपद्गतं कश्चन यो विमोक्षेत् स बान्धवः स्नेहयुक्तः सुहृच्च।। महा. कर्णपर्व 68/24
जो मनुष्य मुसीबत में फंसे हुए मनुष्य का साथ देता है तथा संकट से मुक्त करता है वही है और वही स्नेह करने वाला मित्र है।
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न हि तत्र धनं स्फीतं न च सम्बन्धिबान्धवाः।
तिष्ठन्ति यत्र सुहृदस्तिष्ठन्ति मतिर्मम।। महा. शान्तिपर्व 168/3
मेरे विचार से जहां पर धन सगे-संबंधी और बंधु-बांधव भी साथ नहीं देते हैं वहां पर मित्र के साथ देते हैं।
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मित्रद्रोहे निष्कृतिर्नास्ति लोके।। महा. आश्वमेधिकपर्व 10/6
इस संसार में मित्रद्रोह के पाप से मुक्ति पाने का कोई रास्ता नहीं हैं।
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मित्रता पर संस्कृत श्लोक |