दर्शन (Darshan)/ Philosophy, भारतीय दर्शन (Indian Philosophy)

 Philosophy, दर्शन (Darshan), भारतीय दर्शन (Indian Philosophy)

 Philosophy दर्शन (Darshan) अर्थ क्या है? इसका स्वरूप क्या है? भारतीय दर्शन ( Indian philosophy) किसे कहते हैं? इस लेख में इन सब तथ्यों को समझते हैं।

दर्शन (Darshan) का अर्थ

 दर्शन (Darshan) का अर्थ है - तत्त्व (पदार्थ का) ज्ञान प्राप्त करना या अनुभव करना। दर्शयते अनेन इति दर्शनम्।  अर्थात् जिसके द्वारा देखा जाए या जिसके द्वारा देखने की दिव्य शक्ति प्राप्त हो, वह दर्शन (Darshan)  है।  दर्शन (Darshan)  शब्द दृश् धातु में ल्युट् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है देखना यहाँ दृश् धातु दृशिर् प्रेक्षणे है, प्रेक्षण का अभिधेय अर्थ है- प्रकष्ट रूप से देखना। 

 शब्दकोश के अनुसार  दर्शन (Darshan) का अर्थ - देखना, प्रत्यक्ष जानना और निरीक्षण करना है।  यहाँ पर यह जिज्ञासा होती है कि क्या देखा जाए और किसके द्वारा देखा जाए? इस जिज्ञासा की निवृत्ति के विषय में महर्षि याज्ञवल्क्य ऋषि ने कहा है - आत्मा वा अरे दृष्टव्यः।। अर्थात् आत्मा को देखना चाहिए और  दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्ववरम्।।अर्थात् दिव्य चक्षु के द्वारा देखना ही दर्शन है। कहने का तात्पर्य है कि आत्मज्योति से आत्मस्वरूप का साक्षात्कार करना ही दर्शन (Darshan) है। दर्शन का मतलब चक्षु द्वारा प्रत्यक्ष देखना आवश्यक नहीं है, अपितु आत्म ज्ञान के द्वारा जीवन के वास्तविक सत्य को जानना है।

संक्षेप में कह सकते हैं कि शुद्ध अन्तःकरण में तपस्वी महर्षि जिस सत्य का अनुभव करते हैं, उस का नाम दर्शन (Darshan) है। (स्वामी अखण्डानन्द)

फिलॉसफी (Philosophy) का अर्थ

फिलॉसफी (Philosophy) का अर्थ है - ज्ञान, प्रज्ञा या विद्या के प्रति अनुराग। पाश्चात्य जगत में दर्शन शब्द के लिए फिलॉसफी (Philosophy) शब्द का प्रयोग प्रचलित है। फिलॉसफी (Philosophy)  एक ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका निर्माण दो शब्दों से बना है- फिलॉस और सोफिया। फिलॉस का अर्थ प्रेम और अनुराग है तथा सोफिया का अर्थ ज्ञान, विद्या या प्रज्ञा है। (दृष्टव्यः भारतीय दर्शन जगदीशचन्द्रमिश्र)

ज्ञान और प्रज्ञा मनुष्य जीवन के प्रमुख अंग या तत्त्व हैं। मनुष्य जीवन में इनके न होने पर वह पशु-तुल्य समझा जाता है। नीतिशास्त्र में कहा भी गया है - ज्ञानेन हीना पशुभिः समानाः। ज्ञान और प्रेम का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। प्रेम मनुष्य जीवन का आधार है तो ज्ञान उसका प्रतिफल है। प्रेम और ज्ञान के विना मनुष्य का जीवन निरर्थक है। प्रेम ही उस परम परमेश्वर परमात्मा का स्वरूप है और ज्ञान उसका प्राप्त करने का साधन है। प्रेम को कहीं खोजा नहीं जा सकता है यह तो ज्ञान और प्रज्ञा का परिणाम है। 

संक्षेप में कह सकते है कि ज्ञान और प्रेम के द्वारा निर्धारित उस परमात्मा परमेश्वर को जानना ही फिलॉसफी (Philosophy) है।

दर्शन (Darshan) और फिलॉसफी (Philosophy)

दर्शन (Darshan) और फिलॉसफी (Philosophy) का अर्थ बताया गया है जिससे ज्ञात होता है कि दोनों शब्दों का लक्ष्य एक ही है अर्थात्  ज्ञान प्राप्ति और सत्य की खोज है। दोनों शब्दों में लक्षणगत समानता होने पर भी उद्देश्यगत भिन्नताएं है, जो इस प्रकार है-

दर्शन (Darshan) का अर्थ आत्मतत्त्व को देखना है और फिलॉसफी (Philosophy) का अर्थ ज्ञान के प्रति अनुराग या प्रेम है। दर्शन (Darshan) का उद्देश्य त्रिताप (आध्यात्मिक, आदिभौतिक, आधिदैविक) का शमन करना है और आत्म-दर्शन करना है। जबकि पाश्चात्य शब्द फिलॉसफी (Philosophy) केवल बौद्धिक सत्ता को स्वीकार करता है। यहाँ ज्ञान शब्द का केवल व्यहारिक पक्ष है, जबकि दर्शन आध्यात्मिक पक्ष के साथ साथ व्यहारिक पक्ष को भी स्वीकार करता है। भारतीय दर्शन का मूल परमतत्व परमेश्वर या वेद हैं, जबकि पाश्चात्य फिलॉसफी (Philosophy) शब्द का ऐतिहासिक आधार स्पष्ट नहीं है। भारतीय दर्शन (Indian philosophy)  के लेखक जगदीशचन्द्र मिश्र जी ने लिखा भी है - जहां तक पाश्चात्य दर्शन की उत्पत्ति का प्रश्न है, इसका कोई ऐतिहासिक आधार स्पष्ट नहीं है। प्रसिद्ध इतिहासविद 'हीरोडोटस' (विक्रमपूर्व पञ्चम शताब्दी) ने सर्वप्रथम क्रीसस के द्वारा दार्शनिक सोलन के लिए फिलॉसफी शब्द के प्रयोग का ऐतिहासिक प्रयोग किया गया है। पेरिक्लीज के प्रसिद्ध व्याख्यान में एथेन्स के निवासियों को ज्ञान अनुरागी कहने के लिए व्युसिडाइड्स ने भी फिलॉसफी शब्द का प्रयोग किया है। सुकरात ने विज्ञान आदि विषयों के व्याख्याता सोफिस्ट (ज्ञान उपदेशक) लोगों से अपने को अलग करने के लिए अपने आपको फिलॉसफर पर बतलाया। सुकरात के शिष्य प्लेटो तथा प्लेटो के शिष्य अरस्तु ने इसका न केवल प्रचार किया प्रत्युत्तर अनेक प्रमाणिक निबंध लिखकर फिलॉसफी (Philosophy) शब्द को एक स्वरूप प्रदान किया।(पृ.17)

भारतीय दर्शन (Indian philosophy) 

 भारतीय दर्शन (Indian philosophy) एक विशिष्ट चिन्तन है। इसमें किसी किसी जड सिद्धांत की स्थापना नहीं है, इसमें आत्मतत्व या आत्मविद्या की स्वतंत्रता है। भारतीय दर्शन (Indian philosophy)  का परम लक्ष्य ही आत्मदर्शन है। अपने आप को जान लेना ही उस परमात्मा को जान लेना है। भारतीय दर्शन (Indian philosophy) में आत्मज्ञान हो या तत्वज्ञान, धर्मज्ञान हो या ब्रह्मज्ञान हो, सबका एक मात्र लक्ष्य सत्य को जानना है और उसे आत्मसात करना है। भारतीय दर्शन (Indian philosophy) के अनुसार दुःख आत्म-अज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अपने आप को पहचानते ही आनन्द का अनुभव करता है। वह अपने अन्दर उपस्थित सच्चिदानंद को पहचान लेता है और  अहं ब्रह्मास्मि मैं ब्रह्म हूँ। तथा तत्त्वमसि तुम भी वही (ब्रह्म) हो। इस सत्य को जान लेना ही भारतीय दर्शन का मूल उद्देश्य है  और आत्मवत् सर्वभूतेषु  यही भारतीय दर्शन (Indian philosophy) का परमोत्कर्ष है। 

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