पर्यावरण पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित Sanskrit Shlokas On Environment And Environmental Protection

 पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlokas On Environment And Environmental Protection.

पर्यावरण पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
पर्यावरण पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित 

पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण {Environment And Environmental Protection} पर हमारे धर्मशास्त्रों में विशेष जोर दिया गया है। भारतीय संस्कृति में विशेषत: संस्कृत ग्रंथों में  पर्यावरण के हर तत्व को देवता की संज्ञा दी गई है- 

अग्निर्देवता वातोदेवता सूर्योदेवता..वरुणो देवता।

ऋग्वेद में पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण {Environment And Environmental Protection} के विषय पर कहा गया है कि जगदीश्वर भगवान विष्णु पृथ्वी सहित सात तत्वों पृथ्वी, जल,अग्नि,वायु ,आकाश, विराट परमाणु और प्रकृति को धारण करते हैं और उनकी रचना करते हैं, हम लोगों को वे प्राप्त होते हैं, अतः हमें उन्हें समझना चाहिए, वही हमारी रक्षा करते हैं-

अतो देवा अवन्तुना यतो विष्णुर्विचक्रमे।

पृथिव्याः सप्त द्यामभिः।। 

वेदों में इस प्रकार के असंख्य उदाहरण मिलते है। 

खं वायुमग्निं सलिलं महीं च ज्योतिषि सत्त्वानि दिशो द्रुमादीन्।

सरित्समुद्राश्च   हरेः  शरीरं   यत्किंच   भूतं   प्रणमेदनन्यः।।

आकाश, वायु,अग्नि, जल, पृथ्वी, नक्षत्र, प्राणी, दिशाएं, पेड़-पौधे, नदी- समुद्र सहित यह सारा ब्रह्माण्ड उस परमपिता परमेश्वर का विराट स्वरूप है। सभी प्राणी यह समझकर प्रेमभाव से इन्हें प्रणाम करतें हैं।

तदेेेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चद्रमाः।

तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म ता आपः स प्रजापतिः।।

सर्वव्यापक  परमात्मा ही प्रजापति है, वही  अग्नि, सूर्य, , हवा, चन्द्रमा, शुक्र और जल स्वरूप सर्वत्र व्याप्त है।

हम यहाँ पर्यावरण को समझते हुए  पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas On Environment And Environmental Protection) का वर्णन करेंगे।

पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment.

 पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment. -   जो हमारे चारो ओर आच्छादित है वह पर्यावरण है, यही पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment है - परितः आवृणोति सर्वान् अस्मान् तत् पर्यावरणम्। पर्यावरण परि+आ+वृ+ल्युट् योग से निष्पन्न है। जो पदार्थ मानव जीवन के चारों  ओर हैं और मानव जीवन को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, वही पर्यावरण है। वेदों में पर्यावरण विषय पर सर्वत्र  कल्याणकारी कामना की गई है- 

शन्नोवातः पवतां शन्नः तपतु सूर्यः।

शन्नः कनिक्रद्देवः पर्जन्योऽभिवर्षतु।।

पर्यावरण पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित 

Sanskrit Shlokas On Environment

पर्यावरण पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित  Sanskrit Shlokas On Environment  - प्रकृति ही पर्यावरण की संवाहिका और संरक्षिका है। पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रकृति और मनुष्य का परस्पर सन्तुलन होना आवश्यक है। प्रकृति में व्याप्त पंचमहाभूतों से ही मनुष्य के शरीर का निर्माण हुआ है।  यथा- 

ज्ञितिर्वारि हविर्भोक्ता वायुराकाश एव च।

स्थूलभूता इमे प्रोक्ताः पिडोऽयं पंच भौतिकः।।

इन पंच महाभूतों का समवाय ही पर्यावरण है। क्योकि ये पञ्च महाभूत - पृथिवी,जल वायु, आकाश और तेज (अग्नि) ही  सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विद्यमान है। कर्मपुराण में इन पंचमहाभूतों को ब्रह्म की संज्ञा दी गई है। यथा-

भूमिरापोऽनलो वायुर्व्योमांहकार एव च।

यस्य रूपं नमस्यामि भवन्तं ब्रह्मसंज्ञितम्।।

पर्यावरण को भी इन्हीं पंचतत्वों के आधार पर स्थलमण्डल, जलमण्डल, तजोमण्डल, वायुमण्डल और नभमण्डल में विभाजित किया गया है। ये पांच प्रकार ही पर्यावरण के भेद हैं। पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण पर संस्कृत श्लोक में हम इन्हीं पांच तत्वों भूमि, जल, आकाश, वायु और तेज के विषय पर संस्कृत श्लोक देखेंगे।

भूमि 

भूमौ च जायते सर्वं भूमौ सर्वं विनश्यति।

भूमि प्रतिष्ठा भूतानां भूमिरेव परायणम्।।  

सम्पूर्ण पदार्थ भूमि पर ही उत्पन्न होते हैं और इसी भूमि पर नष्ट हो जाते हैं। भूमि ही सम्पूर्ण प्राणियों का आधार और आश्रय स्थल है। मातृभूमि पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित पढ़े 

प्रतिविश्वेषु वसुधा शैलकाननसंयुता। 

सप्तसागसंयुक्ता सप्तद्वीपमिता सती।।

सम्पूर्ण विश्व में यह पृथ्वी पर्वतों और वनों से युक्त  होती है और सप्त समुद्रों से सेवित तथा सप्तद्वीप समन्वित होती है।

पर्यावरण को सन्तुलित और सुरक्षित रखने के लिए पृथ्वी पर वृक्षो का होना परमावश्यक है। संस्कृत ग्रन्थों में वृक्षों के महत्व के विषय में कहा गया है- 

वृक्ष........ जीवेनात्मनानुप्रभुतः पेपीयमानो मोदमानस्तिष्ठति।।

वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत है और जल का सेवन करता हुआ आनन्दपूर्वक स्थिर है।

जल - 

जल पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण अंग है। जल के बिना जीवन असम्भव है। (जल पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें)   भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि, जल नर का अयन अर्थात आश्रयस्थल होने के कारण, जल को नार कहा गया है। जिस कारण जल को नारायण भी कहा जाता है - 

आपो नारा इति प्रोक्ता नाम पुर्वमिति श्रुतिः।

अयनं तस्य ता यस्मात् तेन नारायणः स्मृतः।।

 जल  सम्पूर्ण  विश्व में एक ही प्रकार का होता है। परन्तु आकाश से पृथ्वी पर आते हुए वह जल देश काल परस्थिति के गुण या दोष स्वरुप हो जाता है-

जलमेकविधं सर्वं पतत्यैन्द्रं नभस्तलात्।

तत् पतत् पतितं चैवं देशकालावपेज्ञते।।

आकाश 

आकाश अनन्त है। इसमें सभी सिद्ध पुरुष एवं देवता निवास करते हैं । इस आनंदमय आकाश में अनेक लोक हैं। इसका कोई भी अंत नहीं है।

अनन्तमेतदाकाशं  सिद्धदैवतसेवितम् ।

रम्यं नानाश्रयाकीर्णं यस्यान्तो नाधिगम्यते । ।

बर्षा का मूलाधार आकाश ही है जिसे नभो मण्डल भी कहा जाता है। आकाश से सतत बर्षा से जो जल नीचे की ओर प्रवाहित होता है, उससे अनेक स्रोतों, नदियों  और समुद्र की उत्पति होती है और वही जल जब पृथ्वी के संयोग से अनेक प्रकार के औषधियों का कारक होता है -

तासां वृष्टयूदकानीह यानि निम्नैर्गतानि तु।

अवहन् वृष्टिसतत्या स्रोतः स्थानानि निम्नगाः।।

ये पुनस्तदपां स्तोका आपन्नाः पृथिनीतले।

अपां भूमेश्च संयोगादोषधयस्तास्तदाऽभवन्।।

वायु 

वायु तो पर्यावरण के प्राण हैं। वायु ही संसार है। वायु को ही ईश्वर कहा गया है- 

वायुर्विश्वमिदं सर्वं प्रभर्वायुश्च कीर्तितः।।

यजुर्वेद में कहा गया है कि वायु हमारे कल्याण के लिए प्रवाहित हो- 

शन्नोवातः पवतां........।

जिस प्रकार इस लोक में प्रविष्ट हुआ वायु प्रत्येक रूप के अनुरूप हो रहा है उसी प्रकार सम्पूर्ण भूतों का एक ही अंतरात्मा प्रत्येक रूप के अनुरूप हो रहा है।

वायुर्यथैको भुवनं प्रविष्टो रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव ।

एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा रूपं रूपं प्रतिरूपो वहिश्च।।

यह भी पढ़े -  पंचवायु प्राणवायु, उदानवायु,समानवायु,व्यानवायु,अपानवायु 

तेज 

यज्ञों से उत्पन्न होने वाला जो धूम है, उससे उद्भव प्राप्त करने वाला अभ्र सर्वदा द्विजो का हितकारक होता ता है। दावानल के धुएं से उत्पन्न बादल को वनों का हित करने वाला कहा गया है।

वजध मोतृभवं चापि द्विजानां हितकृत्सदा।

दावाग्निधुमसंभूतमभ्रं वनहितं स्मृतम्।।

जिस प्रकार अग्नि का मित्र वायु है, जो हर जगह पर उसका उपकार करता है उसी तरह यह आपका मित्र है, जिससे आपका उपकार होगा।

यथाग्ने श्वसनों मित्र सर्वत्रपकोरोति च ।

तथायं भवतो मित्रं सदा त्वामनुयास्यति ।।


संस्कृत शास्त्रों में पर्यावरण को एक ही ईश्वर के विविध रूप में स्वीकारा गया है। यथा-

तदेवाग्रिस्तदादित्यस्तदृायुस्तदु चंद्रमाः ।

 तदेव शुक्रं तहृहा तदापस्तत्प्रजापतिः।।

वही अग्नि है, वही सूर्य है, वही वायु है, वही चंद्रमा है, वही शुक्र है, वही ब्रह्म है, वही जल है और वही प्रजापति है।

पर्यावरण संरक्षण पर संस्कृत श्लोक

भारतीय संस्कृति और संस्कृत शास्त्रों में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष महत्व दिया गया है। पर्यावरण हर एक पदार्थ को देवता की संज्ञा दी गई है। पर्यावरण संरक्षण को इसी बात से समझा जा सकता है कि वेदों में भूमि को माता तथा हमें उसका पुत्र बताया गया है -    
 माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्यां।।
संस्कृत शास्त्रों जो पर्यावरण संरक्षण पर संस्कृत श्लोक दिये गये है उनमें से कुछ महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं -

भूमि संरक्षण

हमें जोते हुए खेत में, उपयोगी भूमि पर, गाय के स्थान पर सार्वजनिक स्थान पर, मार्ग के बीच में, जलाशय और जलाशय के किनारे पर तथा श्मशान में मल-मूत्रादि का त्याग नहीं करना चाहिए - 

 न कुष्टे शस्तमध्ये वा गोव्रजे जनससार्द। 

न वर्त्मनि न नद्यादितीर्थेषु पुरुषर्षभ ।।

नाप्सुनैवाम्भसस्तीरे श्मशाने न समाचरेत् । 

उत्सर्ग वै पुरीषस्य मूत्रस्य च विसर्जनम्।।

जल संरक्षण 

आकाश से ग्रहण किया हुआ जल स्वच्छ पात्र में रखकर त्रिदोषनाशक, रसायन और बुद्धिवर्धक होता है तथा इसके अतिरिक्त ग्रहण किये हुए जल को  जिस प्रकार के पात्र में रखा जाता है वह उसके अनुसार गुण ग्रहण कर लेता है, अर्थात स्वच्छ और साफ स्थान पर रखा जल स्वच्छ और साफ रहता है और दूषित जगह रखा हुआ जल दूषित होता है।

दिवार्ककिरणैर्युष्टं निशायामिन्दुरश्मिभिः ।

अरुज्ञमनभिष्यन्दि तत्तुल्यं गगनाम्बुना ।।

गगनाम्बु त्रिदोषन्धं गृहीतं यत् सुभाजने ।

 बल्यं रसायनं मेध्यं पात्रपेक्षि ततः परम्।।


वायु संरक्षण

जो मनुष्य यज्ञ के द्वारा अग्नि में सुगंधित द्रव्य, द्यृत आदि पदार्थों की आहुति देकर वायु को शुद्ध करते हैं। बह्मत्व प्राप्त करके आत्मानुभूति प्राप्त करता हैं।

अग्नि युनिज्म शवसा घृतेन दिव्य सुपर्ण वयसा बृहन्तम् । 

तेन वयं गमेम ब्रहनस्य विष्टप स्वो रूहारणा अधिनाकमुत्तमम्।।



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