राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 National Education Policy 1986
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 |
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का सामान्य परिचय
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हर क्षेत्र में आंदोलनकारी कदम उठाने शुरू किए | शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा राष्ट्र की मांगों को पूरा करने में असमर्थ है इसका परीक्षण होना चाहिए और पुनर्गठन होना चाहिए, परंतु इस बार ना तो किसी आयोग का गठन किया गया और ना ही किसी समिति का प्रथम सरकार ने तत्कालीन शिक्षा का सर्वेक्षण कराया और उसे शिक्षा की चुनौती नीति संबंधी परिप्रेक्ष्य नाम से अगस्त 1983 में प्रकाशित किया। इस दस्तावेज में भारतीय शिक्षा की 1951 से 1983 तक की प्रगति यात्रा का संघीय विवरण, उसकी उपलब्धियों एवं असफलताओं का यथार्थ चित्रण और उसके गुण दोषों को सम्यक विवेचन किया गया है। सरकार ने इस दस्तावेज को जनता के हाथों में पहुंचाया। इस पर देशव्यापी बहस शुरू की। सभी प्रांतों के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से सुझाव प्राप्त हुए। केंद्र सरकार ने इन सुझावों के आधार पर एक नई शिक्षा नीति तैयार की और उसे संसद के बजट अधिवेशन 1986 में प्रस्तुत किया। संसद में पास कराने के बाद इसे मई 1986 में प्रकाशित किया गया इस शिक्षा नीति की घोषणा के कुछ माह बाद इसकी कार्ययोजना नामक दस्तावेज प्रकाशित किया गया भारत की। ऐसी पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति है, जिसमें नीति के साथ उसके क्रियान्वयन की पूरी योजना भी प्रस्तुत की गई और साथ ही उसके लिए पर्याप्त संसाधन जुटाए गए हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का दस्तावेज
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का दस्तावेज 12 भागों में विभाजित है। यहां उसका वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का प्रथम भाग
भूमिका मैं यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 का व्यापक प्रभाव पड़ा है। सभी प्रांतों में 10+2+3 शिक्षा संरचना स्वीकार कर ली गई है प्राथमिक शिक्षा 90% बच्चों को उपलब्ध है। उच्च शिक्षा के स्तर को उठाने की प्रक्रिया को अनिवार्य कर दिया गया है। उच्च शिक्षा के स्तर को उठाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और देश में आवश्यकता अनुसार जनशक्ति की पूर्ति हो रही है परंतु साथ ही यह भी स्वीकार किया गया है कि उस नीति के अधिकांश सुझाव कार्य रूप में परिणित नहीं हो सके हैं फिर इस बीच देश की परिस्थितियों में भारी परिवर्तन हुआ है। देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, परंपरागत मूल्यों में ह्रास हुआ है और लोकतंत्र के लक्ष्यों की प्राप्ति में अनेक अड़चनें आ रही है। इनके अतिरिक्त हमें भविष्य में अनेक समस्याओं का सामना करना होगा अतः आवश्यक है कि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार शिक्षा की नई नीति तैयार करें और उसे क्रियान्वित करें ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का द्वितीय भाग
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का द्वितीय भाग - शिक्षा का सार और उसकी भूमिका है। यह स्वीकार किया गया है कि सबके लिए शिक्षा हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास की बुनियादी आवश्यकता है शिक्षा मनुष्य को सुसंस्कृत बनाती है और संवेदनशील बनाती है जिससे राष्ट्रीय एकता विकसित होती है यह मनुष्य में स्वतंत्र चिंतन एवं एवं सोच समझ की छमता उत्पन्न करती है जिससे हम लोकतंत्र के लक्ष्य स्वतंत्रता समानता मातृत्व समाजवाद धर्मनिरपेक्षता और न्याय की प्राप्ति कर सकते है, आर्थिक विकास कर सकते हैं और अपने वर्तमान एवं भविष्य का निर्माण कर सकते हैं शिक्षा वास्तव में एक उत्तम निवेश है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का तीसरा भाग
3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का तीसरा भाग में राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में संविधान की मूल धारणा एक निश्चित स्तर तक बिना किसी भेदभाव के सभी को समान शिक्षा उपलब्ध हो को सर्वप्रथम वरीयता दी जानी चाहिए साथ ही पूरे देश में समान शिक्षा संरचना 10 +2+3 लागू होनी चाहिए। इसमें प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा की ऐसी आधारभूत पाठ्यचर्या तैयार होनी चाहिए जिसके द्वारा राष्ट्रीय मूल्यों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सके साथ ही प्रत्येक स्तर की शिक्षा का न्यूनतम अधिगम स्तर निश्चित होना चाहिए और उसमें गुणात्मक सुधार होना चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का चौथा भाग
4. चौथा भाग= समानता के लिए शिक्षा में इस बात पर बल दिया गया है कि शिक्षा के क्षेत्र की विषमताओं को दूर किया जाना चाहिए और महिलाओं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों पिछड़े वर्ग अल्पसंख्यकों विकलांगों की शिक्षा के लिए विशेष प्रयत्न किए जाने चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का पांचवा भाग
5. पांचवा भाग= विभिन्न स्तरों का शिक्षा का पुनर्गठन शिशु की देखभाल और शिक्षा में पूर्व प्राथमिक स्तर पर शिशु के पोषण प्राथमिक स्तर पर बच्चों की सूची पूर्ण क्रिया माध्यमिक स्तर पर गति निर्धारक विद्यालयों की स्थापना और उच्च स्तर पर खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना पर बल दिया गया है साथ ही यह घोषणा की गई है कि चुने हुए क्षेत्रों में रोजगार की उपाधि से विलग करने की शुरुआत की जाएगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का छठा भाग
6. छठा भाग= तकनीकी एवं प्रबंधन शिक्षा में तकनीकी और प्रबंधन शिक्षा के महत्व को स्पष्ट किया गया है और इसकी समुचित व्यवस्था पर बल दिया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का सातवां भाग
7. सातवां भाग= शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाना में शिक्षा के प्रशासनिक तंत्र को सक्रिय बनाने शिक्षकों को जवाबदेही निश्चित करने और शिक्षार्थियों को कर्तव्य बोध कराने पर बल दिया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का आठवां भाग
8. शिक्षा के विषय वस्तु और प्रक्रिया को नया मोड़ देना मैं सांस्कृतिक मूल्यों और वैज्ञानिक सोच में समन्वय करने पर बल दिया गया है मूल्यों की शिक्षा और भारतीय भाषाओं के विकास के साथ-साथ गणित और विज्ञान को शिक्षा पर बल दिया गया है और स्वास्थ्यवर्धक क्रियाओं खेलकूद आदि पर बल दिया गया है और अंत में परीक्षा प्रणाली एवं मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार के लिए सुझाव दिए गए हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का नवां भाग
9. नवां भाग = शिक्षक में शिक्षकों के महत्व को स्वीकार किया गया है और उनके वेतनमान बढ़ाने और सेवा शर्तों को आकर्षक बनाने की बात कही गई है और शिक्षक प्रशिक्षण में सुझाव दिए गए हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का दसवां भाग
10. दसवां भाग= शिक्षा का प्रबंध में प्रशासन के विकेंद्रीकरण पर बल दिया गया है राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय शिक्षा सेवा राज्य स्तर पर प्रांतीय शिक्षा सेवा और जिले स्तर पर जिला शिक्षा पर राष्ट्रीय आय की 6% धनराशि व्यय करने की घोषणा की गई है ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का ग्यारहवां भाग
11. ग्यारहवा भाग= संसाधन तथा समीक्षा में यह स्वीकार किया गया कि इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 को लागू करने के लिए एक बड़ी धनराशि की आवश्यकता होगी तथा प्रत्येक प्रस्तावित कार्य के लिए अनुमानित धनराशि आवंटित करने की व्यवस्था की जाएगी इस भाग में इस बात पर भी बल दिया गया है कि प्रत्येक 5 वर्ष बाद नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और उसके परिणामों की समीक्षा की जाए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का बारहवां भाग
12. बारहवां भाग= भविष्य में यहां विश्वास प्रकट किया गया है कि हम निकट भविष्य में शत-प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे और हमारे देश के उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति सर्वोत्तम स्तर के होंगे।
कार्य योजना 1986 का दस्तावेज= मई 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की घोषणा की गई और नवंबर 1986 में इसकी कार्ययोजना नामक दस्तावेज प्रकाशित किया गया यह कार्य योजना 24 भागों में विभाजित है यहां उसका वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत है
1. प्रथम भाग= पूर्व बाल्यावस्था परिचर्या एवं शिक्षा में शिशु के जन्म से लेकर 6 वर्ष की आयु तक स्वास्थ्य की देखभाल एवं पूर्व प्राथमिक शिक्षा के प्रसार हेतु एकीकृत बाल विकास सेवा के पूर्व विद्यालय शिक्षा पक्ष को सुदृढ़ करने पूर्व बाल्यावस्था शिक्षा योजना में स्वास्थ्य एवं पोषण को जोड़ने क्रेश तथा दिवस परिचर्या केंद्रों को सुदृढ़ करने और इन सब कार्यों के लिए अलग से धनराशि की व्यवस्था करने की योजना प्रस्तुत की गई है।
2. द्वितीय भाग= प्रारंभिक शिक्षा निरौपचारिक शिक्षा और ब्लैक बोर्ड योजना में प्राथमिक शिक्षा को सर्व सुलभ बनाने के लिए 1 किमी की दूरी के अंदर प्राथमिक स्कूल और 3 किमी की दूरी के अंदर उच्च प्राथमिक स्कूल और आवश्यकतानुसार निरौपचारिक शिक्षा केंद्र खोलने की बात कही गई है और प्राथमिक स्कूलों की दशा सुधारने के लिए ब्लैक बोर्ड योजना प्रस्तुत की गई है ब्लैक बोर्ड योजना के अंतर्गत प्राथमिक विद्यालयों की न्यूनतम आवश्यकताओं ( दो कमरों का भवन फर्नीचर शिक्षण सामग्री पुस्तकालय सामग्री खेल सामग्री और कम से कम 2 शिक्षक को) की पूर्ति करने और इस सबके लिए धनराशि जुटाने का संकल्प किया गया है।
3. तृतीय भाग = माध्यमिक शिक्षा तथा नवोदय विद्यालय मैं माध्यमिक शिक्षा के प्रसाद एवं उन्नयन के लिए आवश्यकतानुसार माध्यमिक स्कूल खोलने सभी माध्यमिक स्कूलों की दशा सुधारने माध्यमिक स्तर पर खुली शिक्षा की व्यवस्था करनी है और गति निर्धारक नवोदय विद्यालय की स्थापना की पूरी रूपरेखा प्रस्तुत की गई है है।
4. चतुर्थ भाग = शिक्षा का व्यवसायीकरण में प्रारंभ से ही कार्यानुभव पर बल देने +2 के लिए विभिन्न प्रकार के व्यवसायिक पाठ्यक्रम तैयार करने और उपेक्षित वर्गों के बच्चों के लिए अलग से विशेष व्यवसायिक संस्थान स्थापित करने पर बल दिया गया है।
5. उच्च शिक्षा में उच्च शिक्षा के उन्नयन हेतु छात्रों को प्रवेश परीक्षा द्वारा प्रवेश सैनी पाठ्यक्रमों के पुनर्गठन करने उच्च शिक्षा संस्थानों को संसाधन उपलब्ध कराने और उनके शिक्षकों के लिए पुनवोध र्कार्यक्रमों की व्यवस्था करने की बात कही गई है।
6. छठा भाग = मुक्त विश्वविद्यालय तथा दूर शिक्षा में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों को विस्तार देने और नए मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना सावधानी से करने का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया है।
7. सातवां भाग= ग्रामीण विश्वविद्यालयों संस्थानों में केंद्रीय ग्रामीण संस्थान परिषद का गठन करने ग्रामीण विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों का पुनर्गठन करने और इन क्षेत्रों के कुछ संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान करने की योजना प्रस्तुत की गई है।
8. आठवां भाग = तकनीकी एवं प्रबंधन शिक्षा में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद एआईसीटीई एवं राज्यों के तकनीकी शिक्षा बोर्डों को सुदृढ़ करने कुछ अच्छे तकनीकी तथा प्रबंध शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान करने तकनीकी शिक्षा संस्थानों में अंतर संबंध बढ़ाने और क्षेत्र में सतत शिक्षा की व्यवस्था करने की बात कही गई है।
9. नवा भाग = प्रणाली को कार्यकारी बनाना में समस्याओं के प्रशासन तथा शिक्षकों के लिए मानक निर्धारित करने शिक्षा तथा छात्रों की कार्यप्रणाली में सुधार करने और शिक्षा संस्थाओं का मूल्यांकन करने पर बल दिया गया है।
10. दसवां भाग = उपाधियों के रोजगार से दिल लगता एवं मानव शक्ति का नियोजन में राष्ट्रीय परीक्षण सेवा शुरू करना निश्चित किया गया है अब क्षेत्र विशेष के रोजगार प्राप्त करने के लिए क्षेत्र विशेष के राष्ट्रीय परीक्षण में उत्तीर्ण होना आवश्यक होगा।
11. 11 वां भाग = अनुसंधान तथा विकास में उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों को विकसित करने अनुसंधान केंद्रों की अधिक संरचना में सुधार करने अनुसंधान हेतु प्रतिभाओं की खोज करने और कार्यरत शिक्षकों को अनुसंधान के अधिक अवसर सुलभ कराने की योजना प्रस्तुत की गई है।
12. बारवा भाग = नारी समानता के लिए शिक्षा में बालिकाओं के लिए अलग से स्कूल या कॉलेज खोलने बालिकाओं के लिए अधिक छात्रवृत्ति यों की व्यवस्था करने और शिक्षकों की नियुक्ति में महिलाओं को वरीयता देने की योजना प्रस्तुत की गई है।
13. तेरवा भाग = अनुसूचित जाति जनजाति तथा पिछड़े वर्ग की शिक्षा में इनके क्षेत्रों में विद्यालय खोलने को प्राथमिकता देने इन वर्गों के बच्चों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति यों की दर बढ़ाने इनके लिए छात्रावासों की व्यवस्था करने और इन जातियों के शिक्षकों को नियुक्ति करने की योजना प्रस्तुत की गई है।
14. 14 वां भाग = अल्पसंख्यकों की शिक्षा में इनके क्षेत्रों में स्कूल और पॉलिटेक्निक कॉलेज खोलने शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए कोचिंग सेंटर खोलने और इनकी बच्चियों की शिक्षा की व्यवस्था पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया गया है।
15. 15 वां भाग = विकलांगों की शिक्षा में जनपद स्तर पर विकलांगता जानकारी हेतु सेवाएं शुरू करने और उनकी शिक्षा के उपयुक्त व्यवस्था करने की बात कही गई है।
16. सोलवा भाग = प्रौढ़ शिक्षा में प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा को गति प्रदान करने के लिए ग्रामों में सतत शिक्षा केंद्र पुस्तकालय एवं वाचनालय स्थापित करने पर बल दिया गया है ।
17. 17 वा भाग = स्कूल शिक्षा के विषय वस्तु तथा प्रक्रिया में राष्ट्रीय को पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तक में सुधार पर विशेष बल दिया गया है।
18. 18 वां भाग = मूल्यांकन प्रक्रिया तथा परीक्षा सुधार में केवल 10 तथा 12 कक्षाओं के अंत में सार्वजनिक परीक्षा करने सतत मूल्यांकन करने और अक्षर ग्रेड प्रणाली अपनाने की बात कही गई और साथ ही राष्ट्रीय
परीक्षण सेवा शुरू करने एवं नकल विरोधी कानून बनाने की बात कही गई है।
19. 19 वां भाग = युवा तथा खेल में मूल्यांकन में शारीरिक शिक्षा एवं खेलों को शामिल करने पर बल दिया गया है।
20. 20 वां भाग = भाषा विकास में आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास और हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में विकसित करने के लिए अधिक आर्थिक सहायता देने का वायदा किया गया है।
21. 21 वां भाग = सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक कार्यक्रमों को पाठ्यचर्या का अंग स्वीकार किया गया है।
22. 22 वां भाग = संचार साधन तथा शैक्षिक तकनीकी में शिक्षा में रेडियो टेलीविजन कंप्यूटर एवं ओवरहेड प्रोजेक्टर आदि के प्रयोग की संस्तुति की गई है।
23. 23 वां भाग = शिक्षक एवं उनका प्रशिक्षण में शिक्षक शिक्षा के सुधार हेतु प्रत्येक जिले में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान डाइट से स्थापित करने कुछ अच्छे कॉलेजों और शिक्षक शिक्षक कॉलेजों में सम्मानित करने और कुछ बहुत अच्छे कॉलेजों को उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थानों में सम्मानित करने की योजना प्रस्तुत की गई और साथ ही राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद एनसीटीई को स्वायत्त दर्जा देने की बात कही गई है।
24. 24 वां भाग = शिक्षा का प्रबंध में मानव संसाधन मंत्रालय को सुदृढ़ करने प्रशासन का विकेंद्रीकरण करने भारतीय शिक्षा सेवा शुरू करने और जिला शिक्षा परिषद ओं का गठन करने की योजना प्रस्तुत की गई है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के मूल तत्व
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और उसके कार्य योजना 1986 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति अमृति संबंधी जो तत्व उजागर होते हैं उन्हें निम्नलिखित रुप से क्रमबद्ध किया जा सकता है -
1. शिक्षा प्रशासन का विकेंद्रीकरण किया जाएगा
2. शिक्षा की व्यवस्था हेतु पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था की जाएगी।
3. संपूर्ण देश में 10 प्लस 2 प्लस 3 शिक्षा संरचना लागू होगी।
4. विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन किया जाएगा।
5. पूर्व प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
6. अनिवार्य एवं निशुल्क प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को शीघ्रता शीघ्र प्राप्त किया जाएगा।
7. माध्यमिक शिक्षा का पुनर्गठन किया जाएगा।
8. उच्च शिक्षा का प्रसार एवं उन्नयन किया जाएगा।
9. तकनीकी एवं प्रबंधन शिक्षा में सुधार किया जाएगा।
10. परीक्षा प्रणाली और मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार किया जाएगा।
11. शिक्षकों के स्तर और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार किया जाएगा।
12. प्रोड शिक्षा कार्यक्रमों का विस्तार किया जाएगा।
13. सतत शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
14. शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग किया जाएगा।
15. शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाया जाएगा।
16. शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।
17. महिला शिक्षा का विशेष ध्यान दिया जाएगा।
18. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के बच्चों की शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाएगी।
19. पिछड़े वर्ग एवं पिछड़े क्षेत्रों के बच्चों की शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाएगी।
20. अल्पसंख्यकों के बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
21. विकलांग और मंदबुद्धि बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के गुण और दोष
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के गुण -
1. शिक्षा राष्ट्रीय महत्व के वस्तु।
2. तारे योजना एवं वित्त व्यवस्था।
3. निश्चित शिक्षा संरचना।
4. प्राथमिक शिक्षा हेतु ब्लैक बोर्ड योजना।
5. गति निर्धारित विद्यालयों की स्थापना।
6. खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना।
7. तकनीकी शिक्षा का उन्नयन।
8. शिक्षक शिक्षा में सुधार।
9. परीक्षा सुधार।
10. न्यूनतम अधिगम स्तर एवं जवाबदेही।
11. शैक्षिक अवसरों की समानता।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के दोष -
1. असमान शिक्षा व्यवस्था।
2. जन सहयोग के नाम पर जन शोषण।
3. उच्च शिक्षा महंगी।
4. आधार पुर पाठ्यचर्या का अनुपालन नहीं।
5. ब्लैक बोर्ड योजना का ईमानदारी से क्रियान्वयन नहीं।
6. नवोदय विद्यालय योजना असफल।
7. +2 पर व्यवसायिक पाठ्यक्रम असफल।
8. उच्च शिक्षा के साथ खिलवाड़।
9. कैपिटेशन फीस की मार।
10. शैक्षिक अवसरों की समानता के नाम पर वोट की राजनीति।
11. आंतरिक मूल्यांकन असफल।