उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेख Uttarakhand Sanskrit Abhilekh

 Uttarakhand Sanskrit Abhilekh 

उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेख उत्तराखण्ड के इतिहास और  संस्कृत साहित्य के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उत्तराखंड में प्राचीन काल से ही संस्कृत साहित्य का सृजन होता आ रहा है तथा प्राचीनकाल से ही यहां के जनमानस की भाषा संस्कृत ही रही है। जिसके प्रमाण तत्कालीन उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेखों से प्राप्त होते हैं।  उत्तराखण्ड में संस्कृत के अभिलेख प्रथम एवं द्वितीय शताब्दी के प्राप्त हुए है, जिससे यह अनुमान लगया जा सकता है कि उत्तराखण्ड में उस समय संस्कृत आम बोल-चाल की भाषा रही होगी

        उत्तराखण्ड में प्राप्त किया अभिलेखों में शिला-अभिलेख, स्तम्भ-अभिलेख, ताम्रपत्र-अभिलेख, दानपात्र-अभिलेख, यात्रानामावली अभिलेख आदि  उत्तराखण्ड संस्कृत अभिलेख प्राप्त हुए हैं। उत्तराखण्ड में संस्कृत अभिलेखों का संरक्षण एवं संवर्धन उत्तराखण्ड सरकार के तत्वावधान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग देहरादून मण्डल (जिसे 16/06/2013 को आगरा मण्डल से अलग करके बनाया गया), उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय और हेमवन्ती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय  करते हैं। 

उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेखों का संक्षिप्त परिचय 

उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेखों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है-

 यात्रानामावली अभिलेख 

यह अभिलेख जनपद टिहरी गढ़वाल के देवप्रयाग से प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखा है तथा इसकी भाषा संस्कृत है। देवप्रयाग एक धार्मिक नगरी है जहाँ पर अलकनंदा और भागीरथी गंगा का संगम है। यह प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों की तपःस्थली रही है तथा प्राचीनकाल से ही यहाँ लोग दर्शन करने आते है तथा यही से होकर बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा करते थे। यात्रा करने वाले लोगों के नाम इस अभिलेख से प्राप्त होते हैं।

ईश्वरा-प्रशस्ति  शिलालेख

ईश्वरा- प्रशस्ति शिलालेख देहरादून जनपद में स्थित महाभारतकालीन स्थल लाखामण्डल नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। इसकी लिपि अज्ञात है तथा इसकी भाषा संस्कृत है। ईश्वरा-प्रशस्ति शिलालेख लगभग छठी-सातवीं शताब्दी के आप-पास का है। अभिलेख के आरम्भ में त्रिदेव स्वरूप विश्वेश्वर भव देव को नमस्कार किया गया है उसके पश्चात सेहपुर (कालसी) में उत्पन्न यदुवंश नरेश राजर्षि सेनवर्म्न  सहित बारह (12) नरेशों का वर्णन मिलता है। जो इस प्रकार से है-

१. सेनवर्म्न २. आर्यवर्म्न  ३. देववर्म्मन ४. प्रदीप्तिवर्म्मन ५. ईश्वर वर्म्मन ६. श्रीवृद्धिवर्म्मन ७. सिंहवर्म्मन ८. जलवर्म्मन्  ९. यज्ञवर्म्मन् १०. अचलवर्म्मन्  ११. दिवाकरवर्म्मन् १२. भास्करवर्म्मन् ।

भास्करवर्म्मन् और कपिलवर्द्धन् की पुत्री जयावती की पुत्री का नाम ही ईश्वरा था जो जालन्धर नरेश के पुत्र चन्द्रगुप्त की पत्नी थी। ईश्वरा-प्रशस्ति के अन्त में लिखा है कि अयोध्या के वसुदेव भट्ट  के द्वारा यह प्रशस्ति लिखी गई तथा रोहतक निवासी नागदत्त के पुत्र ईश्वर ने इसे उत्कीर्ण किया है।

उत्तरकाशी का शक्ति-स्तम्भ अभिलेख

उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जनपद में विराजमान भगवान विश्वनाथ के मन्दिर के समीप स्थित शक्ति मन्दिर के गर्भगृह में स्थित त्रिशूल के नीचले भाग पर अंकित है। उत्तरकाशी का शक्ति-स्तम्भ अभिलेख की लिपि शंखलिपि माना जाती है और यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस अभिलेख में तीन श्लोक है जिसका निर्माण सम्राट गणेश्वर के पुत्र श्रीगुह  ने करवाया था। पुरात्तत्ववेत्ताओं एवं इतिहासकारों के अनुसार उत्तरकाशी का शक्ति-स्तम्भ अभिलेख का समय छठी एवं सातवीं शताब्दी मानी जाती है। इसके अतिरिक्त उत्तरकाशी जनपद में संस्कृत में लिखे शिलालेख भी प्राप्त होते हैं, जिसमें विश्वनाथ मन्दिर शिलालेख एवं परशुराम मन्दिर शिला अभिलेख प्रसिद्ध है, जो ब्राह्मी लिपि तथा नागरलिपि में अंकित हैं तथा इनकी भाषा शुद्ध एवं परिमार्जित संस्कृत भाषा है।

अनुसूयादेवी शिलालेख

अनुसूयादेवी शिलालेख उत्तराखण्ड के चमोली जनपद के मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित है। गोपेश्वर से उखीमठ वाले मार्ग पर मण्डल से पैदल मार्ग परन्तु अनुसूयादेवी के मन्दिर से पहले अनुसूयादेवी शिलालेख  एक चट्टान पर अंकित है। इस अभिलेख का समय छठी शताब्दी के माना जाता है। इस अभिलेख से सर्ववर्म्मन नरेश के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। अनुसूयादेवी शिलालेख ब्राह्मी लिपि और संस्कृत भाषा में लिखा गया है।  इस अभिलेख से राजा सर्ववर्म्मन् के विषय में जानकारी मिलती है।

पलेठी शिलालेख

पलेठी शिलालेख उत्तराखण्ड के टिहरी जनपद के वनगढ़ क्षेत्र पलेठी नामक स्थान पर है। यहां पर भगवान सूर्य का मन्दिर है।पुरात्तत्वविदों के अनुसार इसका इसका काल छठी से सातवीं शताब्दी माना गया  है। मन्दिर की शिलाओं पर दो शिलालेख प्राप्त होते है, जिन्हें पलेठी शिलालेख कहा जाता है।यह जीर्णावस्था में या अधूरा प्राप्त होता है। संस्कृत भाषा में लिखित पलेठी शिलालेख की लिपि गुप्त काल की ब्राह्मी लिपि है। पलेठी शिलालेख में कल्याणवर्म्मन्  और आदिवर्म्मन् के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख 

पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख उत्तराखण्ड के चमोली जनपद के पाण्डुकेश्वर नामक गांव में स्थित है। यहाँ पर भगवान बद्रीविशाल का मन्दिर योगध्यान बद्री के नाम से प्रसिद्ध है।  कत्यूरी वंश के सम्राट लिलितशूर  की प्रशस्ति में लिखे गये दो  ताम्रपत्र अभिलेख पाण्डुकेश्वर से प्राप्त होते है। उस समय कत्यूरी राजवंश की राजधानी कार्तिकेयपुर थी। यह ताम्रपत्र अभिलेख  श्रीमान् आर्यभट् के आदेश पर गंगभद्र ने उत्कीर्ण किया। 

कत्यूरी राजवंश के ताम्रपत्र अभिलेख और शिलालेख अन्य स्थानों से भी प्राप्त होते हैं। जो कुटिला लिपि और संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं-

१. पदमट पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख  यह अभिलेख पदमट द्वारा उत्कीर्ण करवाया गया है। पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख का समय लगभग 11वीं शताब्दी मानी जाती है।

२. सुभिक्षराज पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख 

३. बागेश्वर का शिलालेख-  यह अभिलेख राजा भूदेव से सम्बन्धित है तथा इसका काल 960 से 980 वि.स. के लगभग माना जाता है।  

. वालेश्वर  ताम्रपत्र अभिलेख यह देशट नामक राजा का परिचय करवाता है। वालेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख का समय लगभग 1015 से 1030 के आस-पास का है।

 मणदेव का शिलालेख 

मणदेव का शिलालेख उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद गुप्तकाशी में नाला नामक स्थान है। इस शिलालेख को नाला पाषाण स्तूप के नाम से भी जाना जाता है। यह शिलालेख ललितामाई देवी के मन्दिर समीप कत्युरी राजवंश का शिलालेख है। इस अभिलेख पर सन् 1168 उत्कीर्ण है। जिसका निर्माण गणदेव ने करवाया था। इसके कुछ अंश को राहुल सांकृत्यायन ने  हिमालय परिचय भाग १ पृ.सं. ४४३ में उद्धृत किया है।

 परशुराम मन्दिर शिलालेख 

 परशुराम मन्दिर शिलालेख उत्तरकाशी में है। जिसमें सुदर्शन शाह की कीर्ति गाथा का वर्णन किया गया है। शिलालेख को हरिदत्त ने  1898 में उत्कीर्ण करवाया था। एक और शिलालेख विश्वनाथ मिन्दर के द्वार पर अंकित है जिसे हरिदत्त ने ही लिखवाया था यह अभिलेख नारगरी लिपि तथा संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं।

गोपेश्वर त्रिशूल-स्तम्भ अभिलेख 

गोपेश्वर त्रिशूल-स्तम्भ अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा गया है जिसकी लिपि कुटिला मानी जाती है। गोपेश्वर त्रिशूल-स्तम्भ अभिलेख  का हिन्दी अनुवाद राहुल सांकृत्यायन ने  हिमालय परिचय भाग-१ में किया है। अभिलेख 1113श.सं. का है और अभिलेख में अशोकमल्ल की शौर्यगाथा का वर्णन किया गया। है।

चान्दपुर-गढ़ी का शिला अभिलेख 

चान्दपुर-गढ़ी का शिला अभिलेख  राजा कनकपाल से सम्बन्धित है। संस्कृत भाषा में लिखा गया यह शिलालेख अस्पष्ट है।

 तालेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख 

तालेश्वर ताम्रपत्र अभिलेख उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित तालेश्वर गांव से प्राप्त हुये हैं। यहां से दो ताम्रपत्र प्राप्त हुये है। जो ब्राह्मी लिपि  में लिखे गये हैं। इन ताम्रपत्र अभिलेखों में ब्रह्मपुर नरेश विष्णु वर्म्मन् और द्युतिवर्म्मन्  का वर्णन प्राप्त होता है। ग्रामीणों ने इन ताम्रपत्र अभिलेखों की खोज 1915 ई. की थी। वर्तमान में यह उत्तरप्रदेश के लखनऊ संग्रहालय में हैं।

उत्तराखण्ड में 15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक संस्कृत भाषा के साथ गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा का प्रयोग भी प्रचलन में आ गया था। 15वीं शताब्दी सें संस्कृत मिश्रित गढ़वाली भाषा में अभिलेख लिखे जाने लगे थे। यथा प्रद्युम्नशाह, फतेहशाह और कर्णावती के ताम्रपत्र, दानपात्र इत्यादि अभिलेख। तथा कुमाऊंनी भाषा और देवनागरी लिपि में लिखित राजा ज्ञानचंद के शासनकाल का ताम्रपत्र अभिलेख तथा इसके अतिरिक्त रामेश्वर मन्दिर ताम्रपत्र, कनलगांव ताम्रपत्र अभिलेख उल्लेखनीय है।

 

उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेख

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