अशोक का कालसी शिलालेख Ashok ka Kalsi Shilalekh
अशोक के चतुर्दश शिलालेखों में कालसी का शिलालेख पंचम शिलालेख या अभिलेख में गिना जाता है।कोई कोई इस शिला अभिलेख को तेरहवां शिलालेख भी मानते हैं। बौद्धधर्म के प्रचार-प्रसार एवं अपनी कीर्तिगाथा के लिए मौर्यवंश सम्राट अशोक ने ये अभिलेख उत्कीर्ण करवाये थे। अशोक का कालसी शिलालेख मौर्य वंश से सम्बन्धित है।
कालसी उत्तराखंड
कालसी शिलालेख
लिपि -
ब्राह्मी भाषा -
प्राकृत स्थान
- कालसी देहरादून उत्तराखंड
देवानंपिये पियदसि लाजा अहा कयाने दुकले ए आदिकाले कथानसा से दुकलं कलेति से ममया बहु कयाने कटे त ममा पुता चा न ताले चा
पलं चा तेहि ये अपतिये मे आवकपं तथा अनुवटिसंति से सुकटं कछंति ए चु हेता देस पि हापयिसति से दुकटं कछति पापे हि नामा सुपदाल ये से अतिकते अंतलं नो हुतपुलुव धमंमहामता नामा तेदसवसाभिसितेना ममया धमंमहामाता कटा ते सवपासंडेसु वियापटा
धंमाधिथानाये चा धंमनवढिया हिदसुखाये वा धंमयुतसा याने कंबोजगंधालानं ए वा पि अंने अपलंता भटमयेसु बंभनिभेसु अनथेषु वुधेसु हिदसुखाये धंमयुताये अपलिबोधाये वियंपटा ते बधंनबधसा पटिविधानाये अपलिबोधाये मोखाये चा एयं अनुबधा पंजाव ति वा
कटात्रिकाले ति वा महालके ति वा वियापटा ते हिदा बाहिलेसु चा नगलेसु सवेसु ओलोधनेसु भातिनं च ने भगिनिना ए वा पि अंने नातिक्ये सवता वियापटा ए इयं धंमनिसिते ति वा दानसुयुते ति वा सवता विजतसि ममा धंमयुतसि वियापटा ते धंममहामता एताये अठाये
इयं धंमलिपि लेखिता चिलिथतिक्या होतु तथा च में पजा अनुवततु
(विशेष दृष्टव्य- भारत के प्राचीन अभिलेख प्रो. प्रभातकुमार मजूमदार)
इस शिलालेख पर सम्राट अशोक के अच्छे कार्यों (भावशुद्धि, कृतज्ञता, दृढभक्ति) का वर्णन, धर्म महापात्र नियुक्त किये जाने का वर्णन, जो धर्म की रक्षा के लिए, धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए, धर्मयुक्त अर्थात धर्म कार्य में लगे हुए लोगों के हित व सुख के लिए तथा कम्बोज, गांधार, एव पश्चिमी सीमा पर रहने वाले अन्य समुदाय के, भृत्य-गृहस्थियों, ब्राह्मण, अनाथों, वृद्धो के सुख सहायता के लिए नियुक्त हैं। ये धर्म महापात्र सम्पूर्ण राज्य में धर्म कार्य, धर्माश्रय वालों, दान करने वालों को सहायता देने के लिए नियुक्त हैं। यह धर्मलिपि चिरस्थाई हो और प्रजा इसका अनुसरण करे, इसीलिए यह धर्मलिपि लिखवाई है।