भारत के प्राचीन अभिलेख Bharat ke Prachin Abhilekh Ancient Epigraphs of India

भारत के प्राचीन अभिलेख 
Bharat ke Prachin Abhilekh

 भारत के प्राचीन अभिलेख का अध्ययन पुरालेख विद्या कहलाती है। अभिलेख का सामान्य अर्थ है- कोई भी ऐसा लेख जो किसी वस्तु या पदार्थ पर उत्कीर्ण हो अभिलेख कहलाता है। भारत के प्राचीन अभिलेख - पाषाण, लकड़ी के स्तम्भ, ताड़पत्र, भोजपत्र, शीला, धातु, वर्तन, कौड़ी, शंख, कपड़ा, हाथी दांत आदि वस्तुओं पर उत्कीर्ण किये गये या लिखे गये। मुख्यतः भारत के प्राचीन अभिलेख ब्राह्मी लिपि, खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं। भाषा के विषय में देखा जाए तो अशोक के अभिलेख पालि और प्राकृत भाषा में हैं तथा तत्पश्चात शुंग कालीन अभिलेखों में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया जाने लगा और गुप्तकाल या इसके पश्चात भारत के अभिलेखों में संस्कृत साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया जाने लेगा। जो तत्कालीन भारतीय संस्कृति से हमें परिचित करवाते है तथा भारतीय संस्कृति की प्राचीनता को दर्शाते हैं।भारतीय इतिहास को जानने के लिए प्राचीन अभिलेख अत्यधिक सहायक है। 

भारत के प्रमुख प्राचीन अभिलेख 
Bharat ke Pramukh Prachin Abhilekh

सबसे प्राचीन अभिलेख कौन सा है

सबसे प्राचीन अभिलेख  बोगजकोई अभिलेख है। इस अभिलेख का निर्माण मितन्वी शासकों द्वारा किया गया था। जिस कारण इसे मितन्वी अभिलेख भी कहा जाता है। बोगजकोई या मितन्वी यह सबसे प्राचीन अभिलेख एशिया माइनर अर्थात मध्य एशिया से प्राप्त हुआ है। जिसका समय लगभग 1400 ई.पू. माना गया है। यद्यपि यह अभिलेख भारत में नहीं है परन्तु इस अभिलेख में भारतीय वैदिक संस्कृति और संस्कृत का वर्णन किया गया है। सबसे प्राचीन अभिलेख बोगजकोई अभिलेख  में किसी सन्धि का उल्लेख है ऐसा अनुमान लगाया जाता है, जिसमें वैदिक देवताओं को साक्षी माना गया है। मितन्वी अभिलेख में वैदिक देवता इन्द्र, मित्र, वरुण, और नासत्य का उल्लेख किया गया है। इसके पश्चात भारत के प्राचीन अभिलेख के क्रम में अशोक के अभिलेख आते हैं।

अशोक के अभिलेख

अशोक के अभिलेख लगभग 40 के आसपास अभिलेख प्राप्त होते हैं। जिन अभिलेखों में ज्यादात्तर अशोक ने 'धम्मलिपि अर्थात धर्मलेख शब्द का प्रयोग किया है। अशोक के अभिलेख ब्राह्मी लिपि और खरोष्ठी लिपि में लिखे गये हैं, जिसमें अधिकत्तर अभिलेखों की भाषा प्राकृत है। अशोक ने अपने अभिलेखों को ऐसे स्थानों पर स्थापित करवाया या उत्कीर्ण करवाया है जहां पर सभी लोग एकत्रित होते हो तथा जहाँ पर व्यापार और तीर्थ-स्थल हो। अशोक के अभिलेख का उद्देश्य धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। इसलिए यह अभिलेख वहाँ-वहाँ उत्कीर्ण करवाये गये जहाँ अत्यधिक लोग  इसे पढ़ सके तथा अपनी नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति कर सकें। 

     अठारहवीं शताब्दी तक प्राप्त सभी अशोक के अभिलेख को  विलियम जोन्स ने 1784 ई. में वैज्ञानिक विधि से पढ़ने का प्रयास किया था। यह कार्य विलियम जोन्स ने जरनल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बैंगल की सहायता से किया तथा 1801 ई. में एशियाटिक रिसर्चर में प्रकाशित किया गया।  अशोक के उपलब्ध समस्त अभिलेखों का प्रकाशन एलेक्जेंडर कनिंघम ने 1879 में कार्पस इन्स्किप्सिनम् इन्डिकेटम प्रथम खण्ड के नाम से प्रकाशित करवाया। जो बाद में 1924  ई. में अग्रेंजी में प्रकाशित हुआ। वर्गीकरण के आधार पर अशोक के अभिलेख निम्नांकित आधार पर विभाजित किये जा सकते हैं- 

१. चतुर्दश शिला अभिलेख

२. कलिंग अभिलेख (धौली और जूनागढ़ के अभिलेख)

३. स्तम्भ अभिलेख 

४. गुहालेख

५. लघुशिला अभिलेख

६. लघु स्तम्भ अभिलेख

 खारवेल हाथी गुफा अभिलेख 

खारवेल हाथी गुफा लेख  कलिंग नरेश खारवेल द्वारा उत्कीर्ण करवाया गया था। यह खारवेल का हाथी गुफा अभिलेख भुनेश्वर में है, जो उड़ीसा के पुरी प्रान्त में स्थित है। इस अभिलेख की भाषा प्राकृत है परन्तु प्राकृत भाषा पर संस्कृत भाषा का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता। खारवेल हाथी गुफा अभिलेख से राजा खारवेल के विजय अभियान तथा लोक मंगल कार्यों का वर्णन प्राप्त होता है। इसी अभिलेख से कलिंग राजा खारवेल  का जैनधर्मावलम्बी सिद्ध होता है।  खारवेल हाथी गुफा अभिलेख के आरम्भ में अर्हतों और समस्त सिद्धों को नमस्कार किया गया है- नमो अरहंतानं नमो सब सिधानं।।

जूनागढ़ अभिलेख 

जूनागढ़ अभिलेख को  गिरनार अभिलेख भी कहा जाता है। यह अभिलेख गुजरात के जूनागढ़ की गिरनार की पहाड़ियों से प्राप्त हुआ है। जूनागढ़ अभिलेख शक क्षत्रप रुद्रदामन द्वारा लिखवाया गया था। जूनागढ़ अभिलेख या गिरनार अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ संस्कृत का पहला अभिलेख माना जाता है, जो गद्य शैली में लिखा गया है। इस अभिलेख में रुद्रदामन के व्यक्तित्व और और उसके शासन प्रबंध पर प्रकाश डाला गया है तथा चन्द्रगुप्त और अशोक के विषय में जानकारी प्राप्त होती है  पुष्य गुप्त ने चन्द्रगुप्त के आदेश पर  जिस  सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था उसके जीर्णोद्धार का  उल्लेख जूनागढ़ के इस अभिलेख में किया गया है।

प्रयाग प्रशस्ति या प्रयाग स्तम्भ-लेख

प्रयाग प्रशस्ति या प्रयाग स्तम्भ-लेख प्रयागराज इलाहाबाद में स्थित है। राजा समुद्र गुप्त ने प्रयाग प्रशस्ति या प्रयाग स्तम्भ-लेख को उत्कीर्ण करवाया था। समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है यह नाम विन्सेंट स्मिथ द्वारा दिया गया था। प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त के राजकवि हरिषेण द्वारा लिखा गया था। यह अभिलेख संस्कृत भाषा में गद्य और पद्य के लिखा गया है, जिसे चम्पू शैली भी कहते है। इस अभिलेख से समुद्रगुप्त के विजय अभियान का पता चलता है।   

उदयगिरि गुहालेख

उदयगिरि गुहालेख उदयगिरि की पहाड़ी पर स्थित है, जो मध्यप्रदेश के मिलसा या विदिशा नामक स्थान पर है। उदयगिरि की पहाड़ी पर स्थित गुहा- मन्दिर जहाँ पर भगवान विष्णु और द्वादश भुजा देवी की मूर्ति अंकित है इन मूर्तियों के ऊपरी भाग पर यह उदयगिरि गुहालेख अंकित है। यही पर एक दूसरा  अभिलेख प्राप्त होता है, जो चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य उत्कीर्ण करवाया गया था।

भितरगांव अभिलेख या भितरी स्तम्भ अभिलेख

भितरगांव अभिलेख या भितरी स्तम्भ अभिलेख उत्तरप्रदेश के कानपुर के भितरी नामक गांव से ट्रेगियर को यह अभिलेख प्राप्त हुआ था। यह भितरी स्तम्भ अभिलेख स्कन्दगुप्त द्वारा लिखवाया गया था। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है। स्कन्दगुप्त और हूणों के आक्रमण का वर्णन इस भितरगांव अभिलेख या भितरी स्तम्भ अभिलेख में किया गया है।

भानुगुप्त का एरण स्तम्भ लेख

भानुगुप्त का एरण स्तम्भ लेख में गुप्त सम्राट भानुगुप्त के सेनापति गोपराज का वर्णन मिलता है। जो बहुत सुन्दर और विख्यात पौरुष वाला तथा इन्द्र देव के समान था। वह एक प्रसिद्ध युद्ध लडते वीरगति को प्राप्त हो गया। उसकी पतिपरायणा स्त्री भी पति गोपराज के साथ अग्नि में प्रविष्ट हो गई। भानुगुप्त का एरण स्तम्भ से ही सती प्रथा का प्रथम प्रमाण प्राप्त होता है। इसी के पास एक वराह प्रतिमा पर हुण शासक तोरमाण का लेख है।

मेहरौली प्रशस्ति लौह-स्तम्भ अभिलेख

मेहरौली प्रशस्ति लौह-स्तम्भ अभिलेख दिल्ली के मेहरौली नामक गांव में स्थित है। इस लौह-स्तम्भ की भाषा संस्कृत तथा लिपि ब्राह्मी है। मेहरौली प्रशस्ति लौह-स्तम्भ अभिलेख में मात्र महाराजा चन्द्र का उल्लेख होने के कारण इसे चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का अभिलेख माना जाता है।

बेसनगर का गरूड़ स्तम्भ अभिलेख

बेसनगर का गरूड़ स्तम्भ अभिलेख  यूनानी या यवन राजदूत हेलियोडोरस द्वारा मध्यप्रदेश के विदिशा या बेसनगर में स्थापित किया गया था। भगभद्र के शासन काल में हेलियोडोरस भारत आया था और उसने भागवत धर्म स्वीकार किया था ऐसा वर्णन मिलता है। बेसनगर का गरूड़ स्तम्भ अभिलेख में अमरत्व के तीन नियम बताये गये है- आत्म संयम, आत्म त्याग और आत्म जागरूकता।

एहोल प्रशस्ति 

एहोल प्रशस्ति अभिलेख को चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने उत्कीर्ण करवाया था। पुलकेशिन द्वितीय के दरवारी कवि रविक्रीति को एहोल प्रशस्ति अभिलेख का लेखक माना जाता है।  एहोल अभिलेख से यह जानकारी प्राप्त होती है कि पुलकेशिन द्वितीय ने  हर्षवर्धन को हराया था तथा इस अभिलेख से पल्लव नरेश के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है।

देवपाड़ा अभिलेख

देवपाड़ा अभिलेख बंगाल के देवपाड़ा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख का निर्माण बंगाल के शासक विजय सेन ने करवाया था। देवपाड़ा अभिलेख में बंग शासकों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। 


मंदसौर अभिलेख 

मंदसौर अभिलेख से राजा यशोधर्मन और विष्णुवर्धन की जानकारी प्राप्त होती है। मध्यप्रदेश के मंदसौर नामक स्थान से मंदसौर अभिलेख प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख की भाषा संस्कृत है। इसके आरम्भ में भगवान पिनाकी शिवशंकर की जयघोष की गई है- सजयति जगतां पतिः पिनाकी...।

इन भारत के प्रमुख प्राचीन अभिलेखों के अतिरिक्त अन्य भी बहुत सारे प्राचीन भारतीय अभिलेख प्राप्त होते हैं, जिसमें तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विरासत का ज्ञान प्राप्त तो होता ही है साथ ही साथ इन अभिलेखों में तत्कालीन सम्राट के तिथि-काल तथा व्यक्तिगत चरित्र का भी ज्ञान होता है।

Ancient Epigraphs of India
भारत के प्राचीन अभिलेख


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