कनकवंश-महाकाव्यम् Uttarakhand Sanskrit Sahitya Kanakvansh-Mahakavya

कनकवंश-महाकाव्यम्

कनकवंश महाकाव्यम् उत्तराखण्ड संस्कृत साहित्य का ऐतिहासिक महाकाव्य है। महाकाव्य में उत्तराखण्ड गढ़वाल के पंवार वंश के महाराजाओं विशेषकर महाराजा कनपाल का वर्णन किया गया है और महाराजा कनकपाल के नाम पर ही इस महाकाव्य का नाम कनकवंश-महाकाव्यम् रखा गया है। इस महाकाव्य में  कनकपाल के चरित्र, यात्रावृत्तांत, कनपाल वंश केे अन्य राजाओं के वर्णन  के साथ-साथ उत्तराखंड गढ़वाल तथा टिहरी गढ़वाल में प्रजामण्डल की स्थापना का वर्णन प्राप्त होता है। कनकवंश महाकाव्यम् की रचना महाकवि बालकृष्ण भट्ट ने की है।


Kanakvansh-Mahakavyam कनकवंश-महाकाव्यम्

महाकाव्यम्  -         कनकवंशम्
    रचयिता -           बालकृष्ण भट्ट
सर्ग -                     27
    नायक -               कनकपाल
मुख्य रस -            श्रृंगार रस 

प्रमुख छन्द-  वंशस्थ, उपजाति, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवजा, स्रग्धरा, शार्दुलविक्रीड़तम्, द्रुतविलम्वित, बसन्ततिलका।
प्रमुख अलंकार- यमक, उपमा, अनुप्रास, रूपक, श्लेष, अतिशयोक्ति, व्यतिरेक आदि।
राजाओं का वर्णन - कनकपाल, अजयपाल, कल्याणपाल, मेदनीशाह, फतेहशाह, प्रदीपशाह, प्रद्युम्न शाह, सुदर्शन शाह, भवानी शाह, प्रताप शाह, कीर्तिशाह, नरेन्द्र शाह, मानवेन्द्र शाह आदि।

बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित कनकवंश महाकाव्यम्

बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित कनकवंश महाकाव्यम् में २७ (सताईस) सर्ग है, जिसको चार खण्ड़ो में विभक्त किया गया है।

प्रथम खण्ड  प्रथम (1) सर्ग से नवम (9) सर्ग पर्यन्त है,  जिसमें प्रारम्भ में भगवान शिव की वन्दना करके नमस्कारात्मक मंगलाचरण के साथ-साथ उत्तराखंड गढ़वाल का परिचय तथा उत्तराखंड गढ़वाल के ऋषि-मुनियों का परिचय है तथा महाराजा कनपाल का धार मालवा प्रान्त  से उत्तराखंड की यात्रा का वर्णन, हरिद्वार तीर्थ, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी, सूर्य प्रयाग, अगस्तमुनि, त्रिजुगी नारायण, गौरीकुंड, केेेदारनाथ मन्दिर, ऊखीमठ, ज्योतिर्मठ(जोशीमठ), विष्ण प्रयाग, पाण्डुकेेश्वर, वद्रीविशाल मन्दिर आदि स्थलोंं का भ्रमण तथा महाराजा कनकपाल अन्त में अपने राजधानी चाँदपुरगढ़ पहुुंचना। प्रथम खण्ड को यात्रा खण्ड भी कहा जाता है।

कनकवंश महाकाव्यम् के सर्ग 10 से 16 तक को द्वितीय खण्ड  माना गया है। द्वितीय खण्ड में कवि बालकृष्ण भट्ट ने  चाँदपुर गढ़ के नृपतियों एवं उत्तराखंड के 52 गढ़ और वहाँ के गढ़पतियों का ऐतिहासिक परिचय करवाया गया है। कनकवंश महाकाव्यम् के 16वें सर्ग में महाराजा अजयपाल के द्वारा राजधानी को चान्दपुर गढ़ से श्रीनगर बनाये जाने का वर्णन है।

तृतीय खण्ड में मेदनीशाह, फतेहशाह, प्रदीपशाह, प्रद्युम्नशाह तथा सुदर्शन शाह आदि राजाओं का वर्णन किया गया है। यह खण्ड़ बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित कनकवंश महाकाव्यम् के सर्ग 17 से 21 सर्ग तक है। तृतीय खण्ड़ में वर्णित प्रमुख घटनाओं में उत्तराखंड में भूकम्प से क्षति, गोरखाओं का आक्रमण एवं गोरखाओं के द्वारा गढ़वाल पर अधिकार करना, तथा सुदर्शन शाह का अंग्रेजों के साथ सन्धि करना एवं गढ़वाल का विभाजन करके तथा सुदर्शन शाह के द्वारा टिहरी को राजधानी बनाना आदि का वर्णन बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित कनकवंश महाकाव्यम् में किया गया है।

कनकवंश महाकाव्यम् का अन्तिम एवं चतुर्थ खण्ड़ सर्ग 22 से 27 तक माना गया है, जिसमे कवि बालकृष्ण भट्ट ने टिहरी गढ़वाल की विशेषता का वर्णन एवं भवानी शाह, कीर्तिशाह, प्रताप शाह, नरेन्द्र शाह तथा मानवेन्द्र शाह आदि राजाओं का वर्णन किया है। इसी खण्ड़ में श्रीदेव सुमन का प्रजामण्डल की स्थापना के लिए आन्दोलन और मृत्यु की सूचना तथा रवांई में तिलाड़ी गोलीकाण्ड का वर्णन तथा टिहरी राज्य का प्रजामण्डल में विलय का वर्णन किया गया है। अन्त में कवि बालकृष्ण भट्ट ने कनकवंश महाकाव्यम् में आत्म निवेदन भी किया है।

कनकवंश महाकाव्यम् उत्तराखण्ड संस्कृत साहित्य का ऐतिहासिक महाकाव्यम् है। यह महाकाव्य उत्तराखंड के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कनकवंश-महाकाव्यम्
कनकवंश-महाकाव्यम् 

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