प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित Sanskrit Shlok on Love With Hindi Meaning

प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Sanskrit Shloka on Love With Hindi Meaning)  प्रेम क्या है ? प्रेम एक एहसास है, यह जीवन की अनुभूति है प्रेम जीवन का अमूल्य उपहार है। प्रेम को किसी परिभाषा में नही बांधा जा सकता है जिसको देखने से, मिलने से और छूने से ह्रदय में आनन्दानुभूति हो,वही प्रेम है संस्कृत साहित्य में प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Sanskrit Shloka on Love With Hindi Meaning)  मिलते हैं
प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित Sanskrit Shlok on Love With Hindi Meaning
प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित 

प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Prem Par Sanskrt Shlok Hindi Arth Sahit) Sanskrit Shloka on Love With Hindi Meaning


प्रेमैव हृदयानि बध्नाति।

प्रेम ही दिलों को जोड़ता है।

Love connects to heart.


रसो नाम परं प्रेम।

अनुभूति या रस या भाव ही प्रेम है।

The feeling is love.


अहो प्रेम्णो विचित्रा गतिः।

प्रेम की गति विचित्र है।
The speed of love is strange.


प्रेम्णा तुल्यं बन्धनं नास्ति जन्तोः।

प्रेम के समान प्राणियों के लिए अन्य कोई बन्धन नहीं है।

There is no other bondage for beings like love.


कः किल न रोदित्यभीष्टविरहेण 

घट्यमान-हृदयशल्यः प्रेम-परिलङ्घितो जन्तुः।

प्रिय वियोग के कारण हृदय को घाव किये हुए, कौन व्यक्ति प्रेम में नहीं रोता है अर्थात् हर व्यक्ति प्रेम में रोता है।


जीवितफलं हि प्रियतमामुखावलोकनम्।

जीवन का उद्देश्य(फल) तो अपनी प्रेमिका के मुख का दर्शन करना है। अर्थात् प्रेमी के लिए प्रेमिका के दर्शन करना ही जीवन का लक्ष्य है।


दुर्निवारा हि नैसर्गिकी प्रीतिः।

स्वाभाविक प्रेम बड़ी कठिनाई से रोकने योग्य होता है।

Natural love is easily not preventable.


प्रणयवञ्चितः पुरुषः स्त्री वा न जीवतुं शक्नोति।

पुरुष हो या स्त्री जो प्रेम में असफल हो जाता है, वह जीवन जीने में भी समर्थ नहीं हो सकता है।


प्रेम पर संस्कृत सूक्ति/ सुभाषितानि Sanskrit Subhashitani on Love.

प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Prem Par Sanskrt Shlok Hindi Arth Sahit) Sanskrit Shloka on Love With Hindi Meaning वेलेंटाइन डे पर संस्कृत श्लोक  Sanskrit Shlokas on Valentine's Day. 
                  यह भी पढ़े- माता पर संस्कृत श्लोक  
प्रेम पर संस्कृत सूक्ति/ सुभाषितानि निम्नलिखित हैं- 


प्रेम प्रेम्णोत्तीर्यते।

प्रेम का उत्तर प्रेम से दिया जाता है।

Love is answered by love.


यत्र प्रेमपयोधिर्न तत्रोपचारताऽर्हति।

जहाँ प्रेम नहीं होता। वहाँ ही औपचारिकता शोभा देती है।


प्रेम्णि का प्रमाणमीमांसा?

प्रेमियों के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है।

Love doesn't require proof.


बलवती खलु वल्लभजनसंगमाशा।

सचमुच प्रियतम से मिलने की आशा बहुत प्रबल होती है।

The hope of actually meeting the beloved is very strong.


विनानुरागं हि प्रणयिनः प्रमदाया जीवनं व्यर्थमेव खलु।

प्रेमी के प्रेम के विना मनुष्य (रमणी) का जीवन व्यर्थ ही है।

Man's life is meaningless without the love of the lover.


अन्यमुखे दुर्वादो यः प्रियवदने स एव परिहासः।

जो बात किसी दूसरे के मुख से बुरी लगती है, वही बात अपने प्रियतम् के मुख से परिहास (हंसी-मजाक) सी लगती है।


प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Prem Par Sanskrt Shlok Hindi Arth Sahit) Sanskrit Shloka on Love With Hindi Meaning वेलेंटाइन डे पर संस्कृत श्लोक  Sanskrit Shlokas on Valentine's Day. 
यह भी पढ़े-  मित्रता पर संस्कृत श्लोक 


दयितं जनः खलु गुणीति मन्यते।

प्रेम के कारण लोग अपने प्रेमी को गुणवान समझते है।


प्रकर्षतः प्रेमगुणस्य नास्ति तन्न वल्लभस्य क्रियते यदीप्सितम्।

प्रगाढ़ प्रेम में मनुष्य अपने प्रिय के इच्छित कार्य को करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है।


प्रेमाहो युवतिषु मौग्ध्यदुर्वदग्धम्।

प्रेम युवतियों के विषय में भोलेपन के कारण अनाड़ी बना देता है।


प्रेमा यदेवमिदमेव न वेदमेतद्,

यो वेद वेदविदसावपि नैव वेद।

यही प्रेम है, बस इतना ही प्रेम है, यह तो प्रेम नहीं है, जो यह सब बाते करता है, वह प्रेम को जानकर भी अनजान होता है।


प्रेमाहो क्वचिदपि नेक्षते व्यपायम्।

प्रेम कभी भी संकट की परवाह नहीं करता है।

Love never cares about distress.


प्रेम पश्यति भयान्यपदेऽपि।

प्रेम हर कहीं भय ही देखता है या महसूस करता है।


प्रेमाहो विविधविधिप्रपञ्चदक्षम्।

प्रेम तरह तरह के बहाने (प्रपंच) बनाने में चतुर बना देता है।


भावानुरक्तहृदयः करुते न किं वा?

प्रेम (भाव) में अनुरक्त हृदय क्या नहीं करवाता? अर्थात् प्रेम में अनुरक्त हृदय सब कुछ करवा लेता है।


सर्वः प्रियः खलु भवत्यनुरूपचेष्टः।

जो जिसका प्रियः होता है वह उसी के अनुरूप चेष्टा करता है।


स्नेहस्य प्रकृतिरहो विवेकशून्या।

प्रेम की प्रकृति विवेक शून्य होती है।

The nature of love is zero conscience.


वेलेंटाइन डे पर संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित (Velentain Day Par Sanskrt ke Shlok Hindi Arth Sahit) Sanskrit Shloka on Valentine's Day With Hindi Meaning.

स्त्रीणां हि सौभाग्यमदप्रसूतिः प्रियप्रसादो मदिरासहस्रम्।

सौभाग्य रुपी मद को उत्पन्न करने वाला प्रिय का प्रेम स्त्रियों के लिए हजार मदिराओं (शराब) का नशा देने के बराबर है।


न गतिर्न मतिर्न वा रतिर्न हि वा भावपरम्परापि च।

इह भूमितलेऽपि पावने प्रतिभाति प्रियया विना न मे।।

इस पृथ्वी पर प्रियतमा के विना मुझे न गति, न मति, न रति और न ही भाव-परम्परा आदि अच्छी लगती है।


 नयन-नलिनीनालानीतं पिबन्ति रसं प्रियाः।

प्रेम करने वाले तो कमनाल द्वारा खींचे गये रस की तरह आँखों-आँखों से ही प्रेम रस का आस्वादन करते हैं।


सा सा सा सा जगति सकले कोऽयमद्वैतवादः।

यह कैसा अद्वैतवाद है? - सब जगह मुझे मेरी प्रिया ही नजर आ रही है। 


येन विना न जीव्यतेऽनुनीयते स कृतापराधोऽपि।

जिस के बिना हम जी न सकें ऐसा प्रेम तो अपराध करने पर भी प्रिय होता है।


उन्मत्त-प्रेम-संंरम्भादारभन्ते यदङ्गना।

तत्र प्रत्यूहमाधातुं ब्रह्मापि खलु कातरः।।

अत्यधिक प्रेम (अनुराग) में पागल (उन्मत्त) युवतियाँ जिस कार्य को प्रारम्भ कर लेती है,  भय के कारण ब्रह्मा जी भी उसमें विघ्न नहीं डालने में है।


न हि वाञ्छति यः प्रियः कदा निजसर्वस्वसमर्पितेऽप्यहो।

प्रतिदानफलं प्रियां प्रति जगति प्रेम तदेव कथ्यते।।

अपना सर्वस्व अर्पित करने पर भी जो बदले में कुछ कामना नहीं करता है, उसे ही संसार में प्रेम कहते हैं।

निस्वार्थ प्रेम करने पर  जो प्रेमी अपनी प्रेमिका से बदले में कुछ पाने की कामना न करे, उसे ही प्रेम कहते है।


प्रेम पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Prem Par Sanskrt Shlok Hindi Arth Sahit) Sanskrit Shloka on Love With Hindi Meaning वेलेंटाइन डे पर संस्कृत श्लोक  Sanskrit Shlokas on Valentine's Day. प्रेम पर संस्कृत सूक्ति/ सुभाषितानि

                  यह भी पढ़े- जिन्दगी पर संस्कृत श्लोक 


प्रेमास्तु तद् यन्न हि किञ्चिदेव, कस्माच्चन प्रार्थयतेऽविकार।

प्रेम उसे कहते हैं, जो विकार हीन रहकर किसी से कुछ नहीं मांगता है।


भावो जन्मान्तरीणो हि स्थिरः सम्बन्ध उच्यते।

जन्मान्तर तक जाने वाला भाव(अनुराग या प्रेम) ही स्थिर सम्बन्ध कहलाता है।


विच्छिन्नसंहितस्य प्रेम्णः प्रत्यक्षितव्यलीकस्य।

विरसो रसो भवति बत तापितशीतस्य पयस इव।

जैसे उबालकर शीतल जल का स्वाद नष्ट हो जाता है, ठीक उसी तरह परस्पर विश्वास खोने के कारण प्रेम टूट कर, किसी तरह पुनः जुड जाय, तो उसका रस समाप्त हो जाता है।


गगनाङ्गणतारकांस्तथा जलधे रम्यमणिव्रजानपि।

परितोषयितुं प्रियाञ्च यः सुविचेतुं भवति क्षमोऽनिशम्।।

प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्रसन्न रखने के लिए आसमान से तारे तथा समुद्र से मोती चुनकर लाने के लिए भी निरन्तर तत्पर रहता है।




Post a Comment (0)
Previous Post Next Post