अतिथि पर संस्कृत श्लोक Mahabharata me Atithi par Sanskrit Shlok with Hindi meaning


अतिथि पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित Atithi par Sanskrit Shlok with Hindi meaning

अतिथि शब्द भारतीय भाषाओँ में एक ऐसा शब्द है जिस शब्द से पूजा, सत्कार, सम्मान आदि अर्थ मानस पटल पर गूंजित होते हैं। अतिथि शब्द का मूल अर्थ होता है - न विद्यते तिथिर्यस्य स अतिथि:।। अर्थात्  जिसके आने की कोई तिथि न हो वह अतिथि है। तैतिरीयोपनिषद में अतिथि को देवतुल्य माना गया है- अतिथि देवो भव:।
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अनित्यं हि स्थितो यस्मात् तस्मदतिथिरुच्यते।।

                                                          अनुशासन पर्व 97/19

जो मनुष्य किसी के घर में हमेशा या सदा  नहीं रहता है वह अतिथि कहलाता है।

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गृहस्थानां च सुश्रोणि नातिथेर्विद्यते परम्।

                                                                                अनुशासन पर्व 2/44

 मनुष्यों के लिए अतिथि सेवा से बढ़कर और कोई सेवा या  कर्तव्य नहीं है।

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मोघमन्नं सदाश्नाति योSतिथिंं न च पूजयेत्।

                                                                         अनुशासन पर्व 92/ दा.पा. 

जो मनुष्य अतिथि का सत्कार नहीं करता है वह व्यर्थ ही भोजन करता है। 

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अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात् प्रतिनिवर्तते।

स दत्त्वा दुष्कृतं तस्मै पुण्यमादाय गच्छति।। 

                                                                                    महा. शान्तिपर्व 191/12

जिस मनुष्य के घर से कोई अतिथि आदर-सत्कार युक्त भिक्षा आदि न पाकर निराश होकर लौट जाता है। वह अतिथि उस मनुष्य को शाप देकर उसके पुण्य लेकर जाता है।

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स्वदेशे परदेशे वा अतिथिं नोपवासयेत्।

काम्यकर्मफलं लब्ध्वा गुरूणामुपपादयेत्।। 

                                                                     महा. शान्तिपर्व 193/15

मनुष्य अपने देश में हो या परदेश में उसे घर आये अतिथि का सत्कार करना चाहिए और उसे भूखा नहीं रखना चाहिए। सकाम कर्मों से मिले हुए फल को अपने गुरुजनों को समर्पित कर देना चाहिए।

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चक्षुर्दद्यान्मानो दद्याद् वाचं दद्याच्च सूनृताम्।

अनुव्रजेदुपासीत स यज्ञः पञ्चदक्षिणः।।

                                                                                अनुशासन पर्व 7/6 

यदि कोई अतिथि घर पर आ जाये तो उसे प्रसन्नचित दृष्टि एवं मधुर वाणी से तब तक उसकी सेवा करनी चाहिए जब तक वह घर से न जाना चाहे तथा जाने पर कुछ दूर तक उसे छोडने के लिए जाना चाहिए। यही मनुष्य की पांच प्रकार की दक्षिणा है।

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यो दद्यादपरिक्लिष्टमन्नमध्वनि वर्तते।

श्रान्तायादृष्टपूर्वाय तस्य पुण्यफलं महत्।।

                                                                            अनुशासन पर्व 7/7

जो मनुष्य अपरिचित थके हारे पथिक को प्रसन्नता से अन्न खाने के लिए देता है उसे बहुत पुण्य प्राप्त होता है।

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महाभारत में अतिथि पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित Mhabharat Me Atithi par Sanskrit Shlok with Hindi meaning

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पाद्यामासनमेवाथ दीपमन्नं प्रतिश्रयम्।

दद्यादतिथि पूजार्थं स यज्ञः पञ्चदक्षिणः।।

                                                                           अनुशासन पर्व 7/12

जो मनुष्य किसी अतिथि को पैर धोने के लिए पानी, बैठने के लिए आसन, प्रकाश के लिए दीपक, खाने के लिए अन्न और ठहरने के लिए स्थान देता है वह पांच दक्षिणाओं वाला यज्ञ करता है।

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श्रान्तमध्वनि वर्तन्तं वृद्धमर्हमुपस्थितम्।

अर्चयेद् भूतिमन्विच्छन् गृहस्थो गृहमागतम्।।

                                                                                    अनुशासन पर्व 62/13

अपना कल्याण चाहने वाले गृहस्थ मनुष्य को थके-मांदे और वृद्ध राही/अतिथि के घर आ जाने पर उसका सत्कार करना चाहिए।

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नावमन्येदभिगतं न प्रणुद्यात् कदाचन।

अपि श्वपाके शुनि वा न दानं विप्रणश्यति।

                                                                        अनुशासन पर्व 63/93

अपने घर आये किसी भी मनुष्य का अपमान नहीं करना चाहिए और नहीं मारना चाहिए। चाण्डाल और कुत्तों को दिया गया अन्न भी फलदायक होता है वह नष्ट नहीं होता है।

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श्रान्तमध्वपरिश्रान्तमतिथिंं गृहमागतम्।

अर्चयीत प्रयत्नेन स हि यज्ञो वरप्रदः।।

                                                        अनुशासन पर्व 145/दा.पा. 

रास्ता चलकर थका हुआ अतिथि यदि घर पर आ जाये तो उसका अच्छी तरह आदर सत्कार करना चाहिए। ऐसे अतिथि यज्ञ से मनोवाञ्छित फल प्राप्त होता है।

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अभ्यागतो ज्ञातपूर्वो ह्यज्ञातोSतिथिरुच्यते।

तयोः पूजां द्विजः कुर्यादिति पौराणिकी श्रुतिः।।

                                                अनुशासन पर्व 92/ दा.पा. 

पहले से परिचित मनुष्य यदि घर पर आये तो वह अभ्यागत कहलाता है। अपरिचित मनुष्य अतिथि होता है। इन दोनों का सम्मान करना चाहिए।

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अतिथिं नावमन्येत नान्नृता गिरमीरयेत्। 

न पृच्छेद् गोत्रचरणं नाधीतं वा कदाचन।।

                                                                अनुशासन पर्व 92/दा.पा. 

अतिथि का अपमान या अनादर नहीं करना चाहिए और नहीं उससे मिथ्या बोलना चाहिए। अतिथि के गोत्र,शाखा और उसके अध्ययन के बारे में नहीं पुछना चाहिए।

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यदर्थो हि नरो राजंस्तदर्थोSस्यातिथिः स्मृतः।।

                                                                            आश्रमवासिकपर्व/26/37

राजन! मनुष्य जिन वस्तुओं का स्वयं उपयोग करता है उन्हीं वस्तुओं से उसे अतिथि का भी सत्कार करना चाहिए।

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अतिथि पर संस्कृत श्लोक Mahabharata me Atithi par Sanskrit Shlok with Hindi meaning
अतिथि पर संस्कृत श्लोक 


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