शैक्षिक तकनीकी (Educational technology) का अर्थ
शैक्षिक तकनीकी शब्द दो शब्दों से बना है- शैक्षिक और तकनीकी। शैक्षिक शब्द का अर्थ है- शिक्षा का या शिक्षा के लिए और तकनीकी शब्द का अर्थ है- प्राविधिक,उपकरण, यन्त्र या शिल्पक। संस्कृत में तकीनीकी को प्रौद्योगिकी कहा जाता है। आंग्ल भाषा में शैक्षिक तकनीकी को Educational technology (एजूकेशन टेक्नोलॉजी) कहा जाता है। अत: शैक्षिक तकनीकी का अर्थ है- शिक्षा में एसे प्राविधिक या उपकरणों का प्रयोग जिससे शिक्षक अपने कार्य को सरल और प्रभावी रूप से विद्यार्थी के समक्ष प्रस्तुत कर सके। अर्थात शैक्षिक तकनीकी का आशय शिक्षा एवं शिक्षण में अभ्युदित नवीन वैज्ञानिक मान्यताओं मनोवैज्ञानिक पहलुओं की क्रिया-विधि के प्रयोग से है।शैक्षिक तकनीकी की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने दी है। जिनमें से प्रमुख परिभाषाएं निम्नांकित है-
फ्रीमैन के अनुसार- शिक्षा तकनीकी शैक्षिक समस्याओं के समाधान का एक व्यवस्थित उपागम है।
एस.के. मिश्रा के कथनानुसार- शैक्षिक तकनीकी को उन पद्धतियों और प्रविधियों का विज्ञान माना जा सकता है, जिनके द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।
एस.एस. कुलकर्णी के मतानुसार- शैक्षिक तकनीकी को शिक्षा प्रक्रिया में प्रयोग किए जाने वाले वैज्ञानिक और तकनीकी सिद्धांतों एवं नवीन खोजों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।शैक्षिक तकनीकी मानवीय एवं गैर मानवीय माध्यमों या साधनों से संयुक्त एक ऐसी प्रक्रिया है, जो शिक्षा व्यवस्था की प्रभावकारिता में वृद्धि करती है।वर्तमान समय में शिक्षा एवं प्रशिक्षण में अनेक शैक्षिक तकनीकों का विकास किया जा चुका है। यथा - टी.वी., टेपरिकार्डर, ग्रामोफोन, कम्प्यूटर, इण्टरनेट, ई-मेल और टेलीकान्फेसिंग आदि।
शैक्षणिक तकनीकी की प्रकृति
शैक्षणिक तकनीकी की प्रकृति का अध्ययन निम्न भागों में विभाजित करके किया जा सकता है-
(१) शैक्षिक तकनीकी का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य।(२) शैक्षिक तकनीकी का वर्तमान स्वरूप।(१) शैक्षिक तकनीकी का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य -
प्रारम्भिक अवस्था में शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग पारस्परिक श्रुति-परम्परा से, ताड़-पत्र, लकड़ी की कलम आदि के उपयोग के द्वारा किया जाता था। धीरे-धीरे कागज अर्थात् चार्ट,चित्र, मॉडल आदि का विकास होते-होते विज्ञान और तकनीकी के प्रगति के परिणामस्वरूप- टेप-रिकॉर्डर, माइक्रोफोन, प्रोजेक्टर, रेडियो(आकाशवाणी), टेलीविजन, शिक्षण मशीन, कम्प्यूटर आदि सूक्ष्म और प्रभावशाली उपकरणों का अस्तित्व प्रकाश में आया और इनका प्रयोग शिक्षा जगत में होने लगा। आगे चलकर शैक्षिक तकनीकी मैं कुछ और नवीनता आयी। इस परिवर्तन को सूक्ष्म शिक्षण, टीम शिक्षण, अनुरूप ई-शिक्षा, अन्य उपागम आदि को आज नवीन परिवर्तनों का परिणाम कहा जा सकता है और इस संदर्भ में शैक्षिक तकनीकी इन परिवर्तनों का पर्याय बन गई।इंटरनेट से वर्तमान शैक्षिक तकनीकी में क्रांति आ गई। इटरनेट ने कंप्यूटर विज्ञान द्वारा विकसित प्रणाली, अभियांत्रिकी और प्रणाली उपागम को शिक्षा के क्षेत्र में विकसित प्रणाली के रुप में प्रयोग में लाया। इस सन्दर्भ में आज शैक्षिक तकनीकी, विकसित प्रणाली उपागम के उस रूप का प्रतिनिधित्व करती है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न अनुसंधानों और अनुभवों के आधार पर शिक्षण और अधिगम की समग्र प्रक्रिया को निर्धारित उद्देश्यों के परिपेक्ष्य में इस तरह नियोजित और नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाता है, ताकि सभी मानवीय और भौतिकी शिक्षण स्रोतों को अधिक से अधिक अच्छे परिणामों की प्राप्ति के लिए कुशलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सके। शैक्षिक तकनीकी के वर्तमान स्वरूप के अनतर्गत शिक्षा जगत की विविध समस्याओं के समाधान के लिए निम्नांकित कार्य किये गये-(१) शिक्षा का नियोजन और आयोजन(२) अधिगम का मनोवैज्ञानिक।(३) पाठ्यक्रम निर्माण और विभिन्न कोर्सों का निर्धारण।(४) शिक्षण और अधिगम सामग्री का उत्पादन, उपयोग।(५) मूल्यांकन।
शैक्षिक तकनीकी के प्रकार एवं उपागम
किसी विषय पर उसके अंगों को समझाने के लिए जिस तरीके या विधि को साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है उसे उपागम कहते हैं। शैक्षिक तकनीकी में इन उपायों में शिक्षण एवं अधिगम को रोचक सरल एवं प्रभाव युक्त बनाने में अत्यधिक सहायता मिलती है शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख उपागम निम्नांकित हैं- (१) कठोर उपागम या हार्डवेयर उपागम।(२) मृदुल उपागम या सॉफ्टवेयर उपागम।(३) प्रणाली विश्लेषण उपागम।
कठोर उपागम या (Hardware) हार्डवेयर उपागम
कठोर उपागम को आंग्ल भाषा में Hardware approach (हार्डवेयर एप्रोच) कहा जाता है। Hardware का अर्थ धातु या पदार्थ होता है तथा approach का अर्थ समीप आना होता है। अतः यह इस दृष्टिकोण से किसी धातु से बने यंत्र की सहायता से शिक्षण एवं अधिगम के निकट आना अथवा शिक्षण अधिगम से संबंधित ज्ञान कौशल की जानकारी प्राप्त करना Hardware approach या कठोर उपागम है। कठोर उपागम को कई नामों से संबोधित किया जाता है। यथा यंत्री कृत तकनीकी दृश्य श्रव्य तकनीकी आदि।इस तरह विज्ञान और तकनीकी प्रगति के लिए परिणाम स्वरूप विकसित जो कुछ भी साधन उपकरण माध्यम और मशीन आदि की सहायता शिक्षण कार्यों के संपादन हेतु ली जाती है उस सभी को कठोर उपागम शैक्षिक तकनीकी के अंतर्गत शामिल किया जाता है।शैक्षिक तकनीकी का प्रथम उपागम पदार्थ कठोर उपागम को दृश्य श्रव्य सामग्री या मशीनी प्रणाली के रूप में भी जाना जा सकता है। भौतिक विज्ञान और अभियंत्रिकी इस प्रौद्योगिकी का उद्गम स्रोत है। कठोर उपागम में रेडियो, टेलीविजन, टेप-रिकॉर्डर, प्रोजेक्टर एवं कंप्यूटर आदि मशीनी उपकरणों को सम्मिलित किया जाता है। कठोर उपागम तकनीकी ने शिक्षा जगत में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं। दूर-दूर तक फैले उपेक्षित और पिछड़े हुए इलाकों में रहने वाले जन समुदाय तक शिक्षा सुविधाएं पहुंचाने का कार्य इस तकनीकी के संप्रेषण एवं संचार साधनों के द्वारा ही किया गया है। कठोर उपागम को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- दृश्य साधन, श्रव्य साधन तथा दृश्य-श्रव्य साधन।(१) श्रव्य कठोर उपागम
ऐसे साधन जिनके द्वारा व्यक्ति अपने श्रवण इंद्रिय के माध्यम से किसी भी व्यक्ति के कंठ से निकली हुई आवाज को सुनकर विचारों, तथ्यों और संदेशों की जानकारी प्राप्त करते हैं, श्रव्य कठोर उपागम कहलाते हैं।
शैक्षिक तकनीकी शब्द दो शब्दों से बना है- शैक्षिक और तकनीकी। शैक्षिक शब्द का अर्थ है- शिक्षा का या शिक्षा के लिए और तकनीकी शब्द का अर्थ है- प्राविधिक,उपकरण, यन्त्र या शिल्पक। संस्कृत में तकीनीकी को प्रौद्योगिकी कहा जाता है। आंग्ल भाषा में शैक्षिक तकनीकी को Educational technology (एजूकेशन टेक्नोलॉजी) कहा जाता है।
अत: शैक्षिक तकनीकी का अर्थ है- शिक्षा में एसे प्राविधिक या उपकरणों का प्रयोग जिससे शिक्षक अपने कार्य को सरल और प्रभावी रूप से विद्यार्थी के समक्ष प्रस्तुत कर सके। अर्थात शैक्षिक तकनीकी का आशय शिक्षा एवं शिक्षण में अभ्युदित नवीन वैज्ञानिक मान्यताओं मनोवैज्ञानिक पहलुओं की क्रिया-विधि के प्रयोग से है।
शैक्षिक तकनीकी की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने दी है। जिनमें से प्रमुख परिभाषाएं निम्नांकित है-
फ्रीमैन के अनुसार-
शिक्षा तकनीकी शैक्षिक समस्याओं के समाधान का एक व्यवस्थित उपागम है।
एस.के. मिश्रा के कथनानुसार-
शैक्षिक तकनीकी को उन पद्धतियों और प्रविधियों का विज्ञान माना जा सकता है, जिनके द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।
एस.एस. कुलकर्णी के मतानुसार-
शैक्षिक तकनीकी को शिक्षा प्रक्रिया में प्रयोग किए जाने वाले वैज्ञानिक और तकनीकी सिद्धांतों एवं नवीन खोजों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
शैक्षिक तकनीकी मानवीय एवं गैर मानवीय माध्यमों या साधनों से संयुक्त एक ऐसी प्रक्रिया है, जो शिक्षा व्यवस्था की प्रभावकारिता में वृद्धि करती है।
वर्तमान समय में शिक्षा एवं प्रशिक्षण में अनेक शैक्षिक तकनीकों का विकास किया जा चुका है। यथा - टी.वी., टेपरिकार्डर, ग्रामोफोन, कम्प्यूटर, इण्टरनेट, ई-मेल और टेलीकान्फेसिंग आदि।
शैक्षणिक तकनीकी की प्रकृति
शैक्षणिक तकनीकी की प्रकृति का अध्ययन निम्न भागों में विभाजित करके किया जा सकता है-
(१) शैक्षिक तकनीकी का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य।
(२) शैक्षिक तकनीकी का वर्तमान स्वरूप।
(१) शैक्षिक तकनीकी का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य -
प्रारम्भिक अवस्था में शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग पारस्परिक श्रुति-परम्परा से, ताड़-पत्र, लकड़ी की कलम आदि के उपयोग के द्वारा किया जाता था। धीरे-धीरे कागज अर्थात् चार्ट,चित्र, मॉडल आदि का विकास होते-होते विज्ञान और तकनीकी के प्रगति के परिणामस्वरूप- टेप-रिकॉर्डर, माइक्रोफोन, प्रोजेक्टर, रेडियो(आकाशवाणी), टेलीविजन, शिक्षण मशीन, कम्प्यूटर आदि सूक्ष्म और प्रभावशाली उपकरणों का अस्तित्व प्रकाश में आया और इनका प्रयोग शिक्षा जगत में होने लगा।
आगे चलकर शैक्षिक तकनीकी मैं कुछ और नवीनता आयी। इस परिवर्तन को सूक्ष्म शिक्षण, टीम शिक्षण, अनुरूप ई-शिक्षा, अन्य उपागम आदि को आज नवीन परिवर्तनों का परिणाम कहा जा सकता है और इस संदर्भ में शैक्षिक तकनीकी इन परिवर्तनों का पर्याय बन गई।
इंटरनेट से वर्तमान शैक्षिक तकनीकी में क्रांति आ गई। इटरनेट ने कंप्यूटर विज्ञान द्वारा विकसित प्रणाली, अभियांत्रिकी और प्रणाली उपागम को शिक्षा के क्षेत्र में विकसित प्रणाली के रुप में प्रयोग में लाया। इस सन्दर्भ में आज शैक्षिक तकनीकी, विकसित प्रणाली उपागम के उस रूप का प्रतिनिधित्व करती है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न अनुसंधानों और अनुभवों के आधार पर शिक्षण और अधिगम की समग्र प्रक्रिया को निर्धारित उद्देश्यों के परिपेक्ष्य में इस तरह नियोजित और नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाता है, ताकि सभी मानवीय और भौतिकी शिक्षण स्रोतों को अधिक से अधिक अच्छे परिणामों की प्राप्ति के लिए कुशलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सके।
शैक्षिक तकनीकी के वर्तमान स्वरूप के अनतर्गत शिक्षा जगत की विविध समस्याओं के समाधान के लिए निम्नांकित कार्य किये गये-
(१) शिक्षा का नियोजन और आयोजन
(२) अधिगम का मनोवैज्ञानिक।
(३) पाठ्यक्रम निर्माण और विभिन्न कोर्सों का निर्धारण।
(४) शिक्षण और अधिगम सामग्री का उत्पादन, उपयोग।
(५) मूल्यांकन।
शैक्षिक तकनीकी के प्रकार एवं उपागम
किसी विषय पर उसके अंगों को समझाने के लिए जिस तरीके या विधि को साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है उसे उपागम कहते हैं। शैक्षिक तकनीकी में इन उपायों में शिक्षण एवं अधिगम को रोचक सरल एवं प्रभाव युक्त बनाने में अत्यधिक सहायता मिलती है शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख उपागम निम्नांकित हैं-
(१) कठोर उपागम या हार्डवेयर उपागम।
(२) मृदुल उपागम या सॉफ्टवेयर उपागम।
(३) प्रणाली विश्लेषण उपागम।
कठोर उपागम या (Hardware) हार्डवेयर उपागम
कठोर उपागम को आंग्ल भाषा में Hardware approach (हार्डवेयर एप्रोच) कहा जाता है। Hardware का अर्थ धातु या पदार्थ होता है तथा approach का अर्थ समीप आना होता है। अतः यह इस दृष्टिकोण से किसी धातु से बने यंत्र की सहायता से शिक्षण एवं अधिगम के निकट आना अथवा शिक्षण अधिगम से संबंधित ज्ञान कौशल की जानकारी प्राप्त करना Hardware approach या कठोर उपागम है। कठोर उपागम को कई नामों से संबोधित किया जाता है। यथा यंत्री कृत तकनीकी दृश्य श्रव्य तकनीकी आदि।
इस तरह विज्ञान और तकनीकी प्रगति के लिए परिणाम स्वरूप विकसित जो कुछ भी साधन उपकरण माध्यम और मशीन आदि की सहायता शिक्षण कार्यों के संपादन हेतु ली जाती है उस सभी को कठोर उपागम शैक्षिक तकनीकी के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
शैक्षिक तकनीकी का प्रथम उपागम पदार्थ कठोर उपागम को दृश्य श्रव्य सामग्री या मशीनी प्रणाली के रूप में भी जाना जा सकता है। भौतिक विज्ञान और अभियंत्रिकी इस प्रौद्योगिकी का उद्गम स्रोत है। कठोर उपागम में रेडियो, टेलीविजन, टेप-रिकॉर्डर, प्रोजेक्टर एवं कंप्यूटर आदि मशीनी उपकरणों को सम्मिलित किया जाता है। कठोर उपागम तकनीकी ने शिक्षा जगत में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं। दूर-दूर तक फैले उपेक्षित और पिछड़े हुए इलाकों में रहने वाले जन समुदाय तक शिक्षा सुविधाएं पहुंचाने का कार्य इस तकनीकी के संप्रेषण एवं संचार साधनों के द्वारा ही किया गया है। कठोर उपागम को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- दृश्य साधन, श्रव्य साधन तथा दृश्य-श्रव्य साधन।
(१) श्रव्य कठोर उपागम
ऐसे साधन जिनके द्वारा व्यक्ति अपने श्रवण इंद्रिय के माध्यम से किसी भी व्यक्ति के कंठ से निकली हुई आवाज को सुनकर विचारों, तथ्यों और संदेशों की जानकारी प्राप्त करते हैं, श्रव्य कठोर उपागम कहलाते हैं।
(२) दृश्य कठोर उपागम
ऐसे साधनों के अंतर्गत वह उपकरण एवं सामग्री आती हैं, जिसे दृश्य इंद्रियों द्वारा साक्षात देख कर ज्ञान संरचना प्राप्त की जा सकती है।
(२) दृश्य कठोर उपागम
ऐसे साधनों के अंतर्गत वह उपकरण एवं सामग्री आती हैं, जिसे दृश्य इंद्रियों द्वारा साक्षात देख कर ज्ञान संरचना प्राप्त की जा सकती है।
(३) दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम
दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम के अंतर्गत वह उपकरण एवं सामग्री आती है, जिससे श्रवण इंद्रिय एवं चक्षु इंद्रिय से साक्षात देखा एवं सुना जाता है, वह सब दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम के अंतर्गत आते हैं।
(३) दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम
दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम के अंतर्गत वह उपकरण एवं सामग्री आती है, जिससे श्रवण इंद्रिय एवं चक्षु इंद्रिय से साक्षात देखा एवं सुना जाता है, वह सब दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम के अंतर्गत आते हैं।
कठोर उपागम या हार्डवेयर उपागम के साधन
श्रव्य कठोर उपागम
|
दृश्य कठोर उपागम
|
दृश्य-श्रव्य
कठोर उपागम
|
रेडियो |
प्रतिरूप model |
दूरदर्शन |
ग्रामोफोन |
चित्र तथा पोस्टर |
चलचित्र |
टेप रिकॉर्डर |
श्यामपट्ट blackboard |
क्लोजर सर्किट टेलिविजन |
लिंग्वाफोन |
मायादीप magic lantern |
वीडियो कैसेट |
टेलिफोन वार्ता |
पत्र-पत्रिकाएं तथा समाचार-पत्र |
प्रयोगशाला |
भाषा प्रयोगशाला |
रेखा चित्र तथा खाके |
कार्यशाला |
आकाशवाणी |
वास्तविक पदार्थ |
ड्रामा |
स्टूडियो रिकॉर्डर |
चित्र दर्शक |
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग |
मानव स्वर |
मानचित्र |
इंटरनेट |
|
ग्लोब |
- |
|
संदर्भ पुस्तके एटलस आदि |
- |
मृदुल उपागम (Software)
इन्हें कोमल उपागम या Software (सॉफ्टवेयर) भी कहा जाता है। यह तकनीकी उपागम सामाजिक विज्ञान मनोविज्ञान और विशेषकर अधिगम के मनोविज्ञान की आधारशिला पर टिका हुआ है। कठोर उपागम तकनीकी या मशीनी उपक्रम रेडियो, टेलीविजन, शिक्षण मशीन आदि के माध्यम से प्रयोग में लाई जाने वाली शिक्षण सामग्री, अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, शिक्षण विधियां, युक्तियां, शिक्षण कौशल चयन, पुनर्बलन तथा मूल्यांकन आदि मृदुल उपागम के अंतर्गत आते हैं।यह तकनीकी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर सरल प्रभावशाली तथा कोमल बनाती हैं इसीलिए इसे कोमल उपागम या मृदुल उपागम कहा जाता है।इस तकनीकी के अंतर्गत कार्य विश्लेषण, शैक्षिक उद्देश्यों को व्यवहार परख शब्दावली में लिखना, छात्रों के प्रारंभिक व्यवहार का परीक्षण करना, पुनर्बलन देना एवं शिक्षण कार्यों का मूल्यांकन करना आदि।मृदुल उपागम तकनीकी और मशीनी उपक्रम (रेडियो, टेलीविजन, शिक्षण यन्त्र आदि) जो कठोर उपागम हैं, उनके माध्यम से प्रयोग में लायी जाने वाली शिक्षण सामग्री, अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, शिक्षण विधियाँ, युक्तियाँ आदि कोमल उपागम हैं।कठोर उपागम और मृदुल उपागम में अन्तर
कठोर उपागम में शिक्षण से संबंधित मशीनों का प्रयोग किया जाता है जबकि कोमल उपागम में अधिगम सामग्री का तथा अधिगम के मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण अधिगम की युक्ति और प्रविधियां आदि प्रयोग किया जाता है। कठोर उपागम और मृदुल उपागम दोनों परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यह दोनों शैक्षिक तकनीकी को बढ़ावा देते हैं और एक दूसरे के पूरक है। संक्षेप में दोनों उपागम के कार्य निम्नांकित हैं-
कठोर उपागम
मृदुल उपागम
(१) श्यामपट्ट
चाक
का कार्य
(२) ओवरहेड प्रोजेक्टर
ट्रांसपेरेंसीज
(३) वीसीआर एवं मॉनिटर
वीडियो
प्रोग्राम
(४) कंप्यूटर
कंप्यूटर
प्रोग्राम
(५) ऑडियो रिकॉर्डर
रिकॉर्ड
डेट सामग्री
(६) खाली कागज
लिखित
सामग्री
प्रणाली उपागम
सामान्यतः प्रणाली उपागम से तात्पर्य उस विधि अथवा तत्वों के संगठन से लगाया जाता है, जो किसी विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इसका संबंध कंप्यूटर विज्ञान से संबंधित है। यह तकनीकी शिक्षा तकनीकी के नवीनतम स्वरूप और संप्रत्यय का प्रतिनिधित्व करती है। प्रणाली उपागम शिक्षा की एक ऐसी प्रणाली मानी जाती है, जिसमें कुल तत्व - इनपुट, प्रोसेसिंग और आउटपुट प्रक्रिया होती है।प्रणाली उपागम को विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित करने का प्रयास किया है- रॉब के अनुसार- प्रणाली उपागम कर्मिक रूप में विशिष्ट ढंग से कार्य करने का व्यवस्थित तरीका है। वर्टलैनफी के मतानुसार अनुसार- प्रणाली उपागम विभिन्न कारक तत्वों की समग्रता पूर्ण समन्वय युक्त समूह है। एकॉफ के कथनानुसार- प्रणाली उपागम एक दूसरे पर आधारित क्रिया संबंधित कारकों का एक समुच्चय है। प्रणाली उपागम विभिन्न शिक्षित व्यक्तियों का संगठन है।प्रणाली उपागम में विभिन्न अवयव क्रमबद्ध व्यवस्थित होते हैं।प्रणाली उपागम के सोपान
(१) नियोजन प्रणाली उपागम के नियोजन के अंतर्गत सर्वप्रथम उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। यह मुख्य रूप से आवश्यकताओं, उपलब्ध साधनों एवं शैक्षिक समस्याओं के तार्किक विश्लेषण पर आधारित होता है।(२) क्रियान्वयनप्रणाली उपागम के क्रियान्वयन के अंतर्गत सर्वप्रथम उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चयनित साधनों को कार्य युक्त बनाया जाता है।(३) मूल्यांकनअंत में प्रणाली उपागम के मूल्यांकन के अंतर्गत उपादेयता एवं वांछनीयता का नियंत्रण किया जाता है।कठोर उपागम तथा कोमल उपागम की आवश्यकता महत्व एवं उपयोगउपागम विषय वस्तु को अधिक ग्रह है तथा सरल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।यह विषय वस्तु को ज्यादा आकर्षित रोचक जीवंत बनाने में समर्थ होते हैं।इन दोनों उपागम का प्रयोग छात्रों की रुचि जागृत करने, उन्हें जिज्ञासु बनाने तथा प्रेरित करने के लिए किया जाता है।उपागमों के प्रयोग से पाठ्यवस्तु छात्रों के लिए अधिक संरचना कृत तथा स्पष्ट महसूस होती है।इन उपागमों के प्रयोग से छात्र अधिक उत्साहित हो कर कक्षा कार्य में सक्रिय हो जाते हैं।उपागम के प्रयोग से शिक्षक तथा छात्रों का समय बचता है, संरचना शक्ति तथा स्रोतों का सही उपयोग होता है। इन उपागमों की आवश्यकता निम्नांकित हो सकती है-★ समस्या का चुनाव।★ उद्देश्यों का निर्धारण।★ उद्देश्यों का विश्लेषण एवं परिभाषीकारण।★ कार्य योजना का विकास।★ उपस्थित समस्याओं का समाधान।★ निदानात्मक तथ्यों का क्रियान्वयन।★ लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मूल्यांकन करना।★ आवश्यक सुधार एवं प्रशिक्षण हेतु तैयार करके प्रणाली का विकास करना।
मृदुल उपागम (Software)
इन्हें कोमल उपागम या Software (सॉफ्टवेयर) भी कहा जाता है। यह तकनीकी उपागम सामाजिक विज्ञान मनोविज्ञान और विशेषकर अधिगम के मनोविज्ञान की आधारशिला पर टिका हुआ है। कठोर उपागम तकनीकी या मशीनी उपक्रम रेडियो, टेलीविजन, शिक्षण मशीन आदि के माध्यम से प्रयोग में लाई जाने वाली शिक्षण सामग्री, अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, शिक्षण विधियां, युक्तियां, शिक्षण कौशल चयन, पुनर्बलन तथा मूल्यांकन आदि मृदुल उपागम के अंतर्गत आते हैं।
यह तकनीकी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर सरल प्रभावशाली तथा कोमल बनाती हैं इसीलिए इसे कोमल उपागम या मृदुल उपागम कहा जाता है।
इस तकनीकी के अंतर्गत कार्य विश्लेषण, शैक्षिक उद्देश्यों को व्यवहार परख शब्दावली में लिखना, छात्रों के प्रारंभिक व्यवहार का परीक्षण करना, पुनर्बलन देना एवं शिक्षण कार्यों का मूल्यांकन करना आदि।
मृदुल उपागम तकनीकी और मशीनी उपक्रम (रेडियो, टेलीविजन, शिक्षण यन्त्र आदि) जो कठोर उपागम हैं, उनके माध्यम से प्रयोग में लायी जाने वाली शिक्षण सामग्री, अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, शिक्षण विधियाँ, युक्तियाँ आदि कोमल उपागम हैं।
कठोर उपागम और मृदुल उपागम में अन्तर
कठोर उपागम में शिक्षण से संबंधित मशीनों का प्रयोग किया जाता है जबकि कोमल उपागम में अधिगम सामग्री का तथा अधिगम के मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण अधिगम की युक्ति और प्रविधियां आदि प्रयोग किया जाता है। कठोर उपागम और मृदुल उपागम दोनों परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यह दोनों शैक्षिक तकनीकी को बढ़ावा देते हैं और एक दूसरे के पूरक है। संक्षेप में दोनों उपागम के कार्य निम्नांकित हैं-
कठोर उपागम |
मृदुल उपागम |
(१) श्यामपट्ट |
चाक
का कार्य |
(२) ओवरहेड प्रोजेक्टर |
ट्रांसपेरेंसीज |
(३) वीसीआर एवं मॉनिटर |
वीडियो
प्रोग्राम |
(४) कंप्यूटर |
कंप्यूटर
प्रोग्राम |
(५) ऑडियो रिकॉर्डर |
रिकॉर्ड
डेट सामग्री |
(६) खाली कागज |
लिखित
सामग्री |
प्रणाली उपागम
सामान्यतः प्रणाली उपागम से तात्पर्य उस विधि अथवा तत्वों के संगठन से लगाया जाता है, जो किसी विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इसका संबंध कंप्यूटर विज्ञान से संबंधित है। यह तकनीकी शिक्षा तकनीकी के नवीनतम स्वरूप और संप्रत्यय का प्रतिनिधित्व करती है। प्रणाली उपागम शिक्षा की एक ऐसी प्रणाली मानी जाती है, जिसमें कुल तत्व - इनपुट, प्रोसेसिंग और आउटपुट प्रक्रिया होती है।
प्रणाली उपागम को विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित करने का प्रयास किया है-
रॉब के अनुसार-
प्रणाली उपागम कर्मिक रूप में विशिष्ट ढंग से कार्य करने का व्यवस्थित तरीका है।
वर्टलैनफी के मतानुसार अनुसार-
प्रणाली उपागम विभिन्न कारक तत्वों की समग्रता पूर्ण समन्वय युक्त समूह है।
एकॉफ के कथनानुसार-
प्रणाली उपागम एक दूसरे पर आधारित क्रिया संबंधित कारकों का एक समुच्चय है। प्रणाली उपागम विभिन्न शिक्षित व्यक्तियों का संगठन है।प्रणाली उपागम में विभिन्न अवयव क्रमबद्ध व्यवस्थित होते हैं।
प्रणाली उपागम के सोपान
(१) नियोजन
प्रणाली उपागम के नियोजन के अंतर्गत सर्वप्रथम उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। यह मुख्य रूप से आवश्यकताओं, उपलब्ध साधनों एवं शैक्षिक समस्याओं के तार्किक विश्लेषण पर आधारित होता है।
(२) क्रियान्वयन
प्रणाली उपागम के क्रियान्वयन के अंतर्गत सर्वप्रथम उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चयनित साधनों को कार्य युक्त बनाया जाता है।
(३) मूल्यांकन
अंत में प्रणाली उपागम के मूल्यांकन के अंतर्गत उपादेयता एवं वांछनीयता का नियंत्रण किया जाता है।
कठोर उपागम तथा कोमल उपागम की आवश्यकता महत्व एवं उपयोग
उपागम विषय वस्तु को अधिक ग्रह है तथा सरल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
यह विषय वस्तु को ज्यादा आकर्षित रोचक जीवंत बनाने में समर्थ होते हैं।
इन दोनों उपागम का प्रयोग छात्रों की रुचि जागृत करने, उन्हें जिज्ञासु बनाने तथा प्रेरित करने के लिए किया जाता है।
उपागमों के प्रयोग से पाठ्यवस्तु छात्रों के लिए अधिक संरचना कृत तथा स्पष्ट महसूस होती है।
इन उपागमों के प्रयोग से छात्र अधिक उत्साहित हो कर कक्षा कार्य में सक्रिय हो जाते हैं।
उपागम के प्रयोग से शिक्षक तथा छात्रों का समय बचता है, संरचना शक्ति तथा स्रोतों का सही उपयोग होता है। इन उपागमों की आवश्यकता निम्नांकित हो सकती है-
★ समस्या का चुनाव।
★ उद्देश्यों का निर्धारण।
★ उद्देश्यों का विश्लेषण एवं परिभाषीकारण।
★ कार्य योजना का विकास।
★ उपस्थित समस्याओं का समाधान।
★ निदानात्मक तथ्यों का क्रियान्वयन।
★ लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मूल्यांकन करना।
★ आवश्यक सुधार एवं प्रशिक्षण हेतु तैयार करके प्रणाली का विकास करना।