शिवगुफा एक नवीन तीर्थ स्थल
सम्पूर्ण हिमालय प्राचीन ऋषि-मुनियों की क्रीडा-स्थली रहा है। जहाँ पर निर्मल नदियों के किनारे एवं अनन्त विस्तृत पर्वत-मालाओं की तलहटी पर सर्वत्यागी संन्यासी ऋषिमुनियों ने अपनी तपश्चर्या के द्वारा असंख्य देवी-देवताओं की आराधना की है । जिनका वर्तमान में तीर्थस्थल के रूप मैं रहस्योद्धाटन होता आ रहा है । जितने ही सुगम या दुर्गम स्थल में जाएं , वहां पर भगवान किसी न किसी रूप में अवश्य मिलेगें | उत्तराखण्ड में अनेकओं तीर्थं विराजमान हैंं | वर्तमान में भी एक नवीन तीर्थस्थल आषाढ़ संक्रांति की पूर्व संध्या पर कुंवा कफनोल मोटर मार्ग पर सिमलसारी पुल के समीप खाणी खाव नामक स्थान पर प्राप्त हुआ है जो एक आश्चर्यचकित करने वाली दैवीय घटना मानी जा रही है ।
शिवगुफा का पौराणिक एवं धार्मिक महत्त्व
उत्तराखण्ड की पौराणिक धार्मिक तीर्थस्थली उत्तरकाशी जिसके विषय में पुराणों में भी कहा जाता है -
सर्वतीर्थमयं सर्वदेवजुष्टं सुपुण्यपदम्।सौम्यकाशीति विख्याता गिरौ वै वारणावते।।
अर्थात- सभी तीर्थों में श्रेष्ठ, सभी देवताओं की अभ्यस्त और वरणावत पर्वत पर स्थित सौम्य काशी नाम से विख्यात नगरी हैं | इस सौम्यकाशी में स्थित दो धाम गंगोत्री और यमुनोत्री है जो विश्व विख्यात हैं | इसी यमुनोत्री धाम अर्थात् कालिंदजा सूर्यसुता मां यमुना के तलहटी पर स्थित नौगांव बडकोट के कुंवा कफनोल मोटर मार्ग पर सिमलसारी पुल के समीप खाणी खाव के पास भगवान शिव की गुफा का प्रकटन धार्मिक एवं पौराणिक दृष्टि विशेष महत्त्व रखता है | क्षेत्रवासियों के लिए यह एक अद्भुत रहस्यमयी घटना है और इस घटना का विशेष महत्व भगवान बौखनाग और रुद्रेश्वर महादेव से लगाया जा रहा है जिसका कारण है अषाढ़ की संक्रांति एवं बाबा बौखनाग का दर्शनार्थ मन्दिर से बाहर आना है।
अषाढ़ संक्रांति का महत्त्व और बाबा बौखनाग एवं शिव गुफा के दर्शन
ज्योतिष शास्त्र एवं भारतीय संस्कृति में अषाढ़ संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन तीर्थ भ्रमण पूजापाठ आदि करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। भगवान बाबा बौखनाग भी संक्रांति के दिन ही मन्दिर से बाहर आते है यह दिन समस्त क्षेत्रवासियों के लिए पवित्र माना जाता है सभी लोग त्यौहार के रुप में इस दिन को मनाते है साथ ही भगवान बाबा बौखनाग के दर्शन करने जाते है परन्तु इस समय कोरोना महामारी के कारण लोग बाबा बौखनाग के दर्शन करने नहीं जा पाये और इसी दिन रुद्रेश्वर महादेव एवं बाबा बौखनाग के कृपा दृष्टि से क्षेत्र में न्याय पंचायत तियां के सिमलसारी पुल के पास शिवगुफा के दर्शन समस्त क्षेत्रवासियों के पाप का नाश करने एवं महामारी से क्षेत्र की रक्षा करने को भी कारण माना जा रहा है और एक विशेष बात इसी दिन बद्रीनाथ धाम में क्षेत्रपाल घण्टाकर्ण के कपाट खोले गये तथा केदारनाथ धाम में सुखद जीवन यात्रा के लिए भैरवनाथ की विशेष पूजा भी हुई है (दृष्टव्य दैनिक भास्कर ) तथा इसी दिन शिव गुफा का प्रादुर्भाव होना अपने आप में एक आश्चर्य का कारण है। जिसपर सभी क्षेत्रवासियों का मानना है कि वास्वत में यह भगवान भोलेनाथ की कृपा दृष्टि का प्रसाद है|
खाणी खाव स्थित शिवगुफा की विशेषता
बरनी नामक गाड़ (नदी ) की कलकल ध्वनि से गुंजायमान एवं चीड़ के सुन्दर और मनोहर वृक्षों के बीच स्थित खाणी खाव नामक स्थान पर प्राप्त शिवगुफा का धार्मिक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है | इस गुफा के दर्शन से साक्षात भगवान शिव शंकर के दर्शन हो जाते हैं इस पाषाण गुफा के अन्दर अनेक छोटे छोटे शिवलिंग है जहाँ पर शैलखंडों से जलधारा स्वयं निकलकर भगवान शिव शंकर का जलाभिषेक करती हैं । यहां असंख्य शैलचित्र है जिनपर शेषनाग, भगवान शिव-पार्वती, गणेश तथा अन्य असंख्य देवी देवताओं के चित्र अंकित है । जो प्राचीन काल से ही धर्म के प्रति इस क्षेत्र की आस्था को प्रकट करता है| सांस्कृतिक दृष्टि से इन शंखाकार पत्थरों को इस तरह से तरासा गया है कि इनसे ढोल, दमांऊ, मृदंग आदि वाद्ययंत्रों की ध्वनियां सुनाई देती है | जो वास्तव में अपने आप में एक अद्भुत कलाकृति है| शंखाकार में उत्कीर्ण ये शैलचित्र सम्पूर्ण रवांई क्षेत्रवासियों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है ।माना जा रहा है कि पुरातात्विक दृष्टि से भी यह अद्भुत कलाकृति के रूप में उजागर होगा ।
शिवगुफा वाद्ययंत्रों की ध्वनियां
शैलचित्र शिवगुफा
संस्कृतेर्रक्षणं सभ्यतारक्षणम्। संस्कृति की रक्षा ही वस्तुतः सभ्यता की रक्षा है |
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